गीता वाहिनी सूत्र - २३ || Geetha Vahini - 23 || Sri Sathya Sai Baba || ज्ञान का रहस्य


ज्ञान का रहस्य

भगवद्गीता के उपदेश में ज्ञान योग एक अमूल्य रत्न की तरह चमकता है। कृष्ण ने सूचित किया नहीं किया, "नहि ज्ञानेन सदृशम्  पवित्रमिह विद्यते" (यहाँ ज्ञान के समान पवित्र अन्य नहीं जान पड़ता) आगे, सातवें अध्याय में उन्होंने कहा है, "ज्ञानी त्वात्मैव मे मतम्" (ज्ञानी तो साक्षात् मेरा स्वरूप है, मेरा यह मत है)। इसी तरह ज्ञान योग की श्रेष्ठता गीता के अन्य संदर्भ में विभिन्न प्रकार से व्यक्त की गई है।

इसलिए ज्ञान योग आध्यात्मिक साधनों में अधिक फलप्रद है। सब शास्त्र केवल ज्ञान में ही अपना पर्यवसान सिद्ध करते हैं। ज्ञान स्वरूप का चिंतन ही ध्यान है; यही व्यक्ति का सत्य स्वरूप है। सब तुम में हैं, तुम सब में हो। यह विश्वास तुम्हें अपनी चेतना में विश्लेषण, विवेक बुद्धि और मानसिक शोध द्वारा दृढ़ कर लेना है। तुम्हें इंद्रियों, मन और बुद्धि इत्यादि, प्रभावों की छाप को अपनी चेतना से अलग कर हटा देना है। इनका आत्मा से, जो कि वास्तव में तुम ही हो, कोई संबंध नहीं होता। आत्मा किसी भी विषय और वस्तु से प्रभावित नहीं होती। यदि इंद्रिय मन बुद्धि इत्यादि कार्य करना बंद भी कर दें तो इस अकर्मण्यता का प्रभाव आत्मा पर नहीं पड़ेगा। आत्म तत्व अप्रभावित, मोह रहित समझना ही ज्ञान का रहस्य है।

श्री सत्य साई बाबा
गीता वाहिनी अध्याय ६ पृष्ठ ५५

The yoga of wisdom shines as a precious jewel amid the teachings of the Bhagavad Gita. Krishna declared “nothing as holy as spiritual wisdom is known here”! Even
later, in the seventh chapter, He said, “I consider the realized soul (jnani) as Myself (jnaanithwathmaiva me
matham)”.
The excellence of the yoga of wisdom has been similarly extolled in many other contexts in the Gita. That is why it is believed to be the most fruitful of all spiritual disciplines. All scriptures find their fulfilment in wisdom alone. Meditation is just contemplation of the embodiment of spiritual wisdom, which is one’s real nature. All are in you; you are in all. You have to get this conviction fixed in your consciousness, by means of analysis, discrimination, and intellectual exploration. You have to isolate and dismiss from consciousness the impressions of the
senses, the mind, the intelligence, etc. These have nothing to do with the Atma, which you really are. The Atma is
unaffected by any subject or object. Even if the senses, mind, intellegence, etc. are inactive, that inactivity will not affect the Atma! To know the Atma as such an entity, unaffected and unattached, is the secret of spiritual wisdom.

Sri Sathya Sai Baba
Geetha Vahini, Chapter 6.

Comments

Popular posts from this blog

Sri Sathya Sai Suprabhatam in Hindi & English || श्री सत्य साई सुप्रभातम् हिंदी || Morning Prayers to Bhagwan Sri Sathya Sai Baba

Sri Rudram | Namakam | with meaning in Hindi | श्रीरुद्रम् | नमकम्- १ | हिंदी अर्थ सहित

श्री सत्य साई अष्टोत्तरशत नामावली | Sri Sathya Sai Ashtottar Shatanaamaavali