गीता वाहिनी सूत्र -२२ || Geetha Vahini - 22 ||Sri Sathya Sai Baba || Kama
काम एष क्रोध एष रजोगुण समुद्भवः।
महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम् ।।
तब अर्जुन के एक और प्रश्न का उत्तर कृष्ण ने दिया, "सब पापों की जड़ काम है" और उन्होंने इसके लक्षण कारण और उपायों को विस्तृत रूप से स्पष्ट किया, "जो देहात्म बुद्धि से बंधा है उसे कर्म विजय की आशा छोड़ देनी चाहिए। ब्रह्मात्म बुद्धि प्राप्त करने पर ही कर्म पर विजय निश्चित होती है। प्रत्येक कार्य भगवान को समर्पित भाव से ही करना चाहिए। समस्त संसार को विष्णु रूप ही समझना चाहिए जो कि जगदातीत है।"
इस अध्याय में तीन मुख्य विषयों को स्पष्ट किया गया है
(१) कर्म सभी को करना है, नहीं तो संसार का अस्तित्व नहीं रहेगा
(२) महान पुरुषों के कर्म का आदर्श सामने रख अन्य सब कर्म करें
(३) लगभग सभी कर्म के कर्तव्य से बंधे हैं।
श्री सत्य साई बाबा
गीता वाहिनी अध्याय ६ पृष्ठ ५४
Then, in reply to another question of Arjuna, Krishna said, “Desire (kama) is the root cause of all evil”, and He elaborated on its nature, cause, and cure. “Those who are bound by the false idea that they are just this body and nothing more can never hope to conquer action (karma); they must acquire the awareness that they are just Brahman and nothing less, in order to be sure of victory. All acts must be performed in the spirit of dedication to the Lord. The universe must be identified with the form of Vishnu, the universal Transcendent.”
In this chapter, three important subjects were clarified:
1. Everyone has to do action (karma), for otherwise the world will come to nought.
2. The action of the great is the ideal that the rest have to keep in view.
3. Almost all in the world are bound by the obligation of action.
Sri Sathya Sai Baba
Geetha Vahini, Chapter 6.
"Kama" can never be satisfied. The word "analam" has another meaning, "not sufficient." "Alam" means satisfaction and "analam" means no satisfaction.
Divine Discourse, 12.08.1984.
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