गीता वाहिनी सूत्र - 2 || Geetha Vahini - 2 || Sri Sathya Sai Baba || Geeta Jayanti
अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे ।
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पंडिताः ।।
Did you grieve when the body underwent many changes hitherto? The child disappeared in the boy, the boy disappeared in the youth, the youth became lost in the middle-aged man, the middle-aged man was lost in the aged old man and the old man is lost in death. You never wept for the changes that affect the body so long; why then weep for this one change? Have you, today, the body you had when you were a boy?
So too, whatever changes your body may suffer, the Atma, the splendour of the true wisdom, remains immortal. Being established unshakably in this knowledge is the sign of the wise, the Jnani." Thus said Krishna.
Sri Sathya Sai Baba
Geetha Vahini, Chapter- 1
शरीर की प्रत्येक बदलती अवस्था पर क्या तुमने शोक किया ? नन्हा बालक किशोर बना, किशोर युवक, युवक प्रौढ़ अवस्था को प्राप्त हुआ प्रौढ़ वृद्ध हुआ, वृद्ध होकर मृत्यु में विलीन हो गया। शरीर इतनी बार परिवर्तित हुआ, लेकिन तुमने तब शोक नहीं किया, फिर इस परिवर्तन के लिए अब क्यों रोते हो? क्या आज भी तुम्हारा वैसा ही शरीर है जैसा बचपन में था ? इसलिए तुम्हारा शरीर कितना भी बदल जाए आत्मा और सच्चे ज्ञान की महत्ता अमर रहती है। ऐसे ज्ञान में दृढ़ता पूर्वक प्रतिष्ठित होना ही ज्ञानी के लक्षण है।
श्री सत्य साई बाबा
गीता वाहिनी ,अध्याय - १ पृष्ठ १२
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