गीता वाहिनी सूत्र -११ || Geetha Vahini -11 || Sri Sathya Sai Baba || Geeta Jayanti || तितिक्षा


मात्रास्पर्शास्तु कौंतेय शीतोष्ण  सुखदुःखदा।।
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत।।

'तितिक्षा' का अर्थ है विरोधी भावों के निरंतर संघर्ष के बीच मानसिक शांति बनाए रखना। शक्तिशाली का यह विशिष्ट अधिकार है। वीर की यही दौलत है। अशक्त व्यक्ति कभी कभी स्थिर चित्त नहीं हो सकते, व्याकुल होने पर मोर पंख की तरह इधर निरंतर रंग पलटते रहते हैं। घड़ी के अंदर की तरह कभी इधर, कभी उधर, कभी आनन्द की ओर कभी शोक की ओर झूलते हैं।

यहां एक विषय पर ध्यान देना होगा सहनशीलता धैर्य से भिन्न है। तितिक्षा का अर्थ भी 'सहन' नहीं है 'सहन' अर्थात सहन करना, निर्वाह करना क्योंकि और कोई अन्य मार्ग नहीं है। उसको जीतने की क्षमता रखते हुए भी उसकी परवाह ना करना इसी को आध्यात्मिक अनुशासन कहते हैं। धैर्य पूर्वक बाह्य सांसारिक द्वैतता को आंतरिक स्थिरचित्तता और शांति के साथ सहना -- यही मुक्ति का मार्ग है। विवेक बुद्धि द्वारा सूक्ष्म परीक्षण कर सब सहना, इसी प्रकार का सहना फलप्रद है।
( ऐसे परीक्षण का नाम विवेक है। इसका अर्थ है "आगमापायिनः" बाह्य संसार के स्वभाव को, इस वस्तु संसार को और इस में 'आकर जाने वाली' अनित्य क्षणभंगुर वस्तुओं को पहचानने की योग्यता)।

श्री सत्य साई बाबा
गीता वाहिनी अध्याय ४ पृष्ठ ३६-३७

“The word fortitude (thithiksha) means equanimity in the face of opposites, putting up boldly with duality. It
is the privilege of the strong, the treasure of the brave. The weak will be as agitated as peacock feathers; they are
ever restless, with no fixity even for a moment. They sway like the pendulum, this side and that, once toward joy, the next moment toward grief.”
Here, some pause has to be made on one point. Fortitude is different from patience. Fortitude is not the same as tolerance (sahana). Tolerance is putting up with something, tolerating it, bearing it, because you have no other choice. Having the capacity to overcome it, but yet, disregarding it —that is the spiritual discipline. Patiently putting up with the external world of duality combined with inner equanimity and peace —that is the path to liberation. Bearing all with analytic discrimination —that type of tolerance will yield good result.
(Viveka is the word used for such discrimination. It means the capacity to recognize what is called the “nature
of the objective world”; that is to say, the world of objects that “come and go” and are not eternal.)

Sri Sathya Sai Baba
Geetha Vahini, Chapter 4.

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