गीता वाहिनी सूत्र -९ || Geetha Vahini - 9 || Sri Sathya Sai Baba || Geeta Jayanti || धीरस्तत्र न मुह्यति
धीरस्तत्र न मुह्यति
देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा।
तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति।।
कृष्ण ने कहा कि "धीरस्तत्र न मुह्यति" जो धीर पुरुष है इस विषय के भ्रम में नहीं पड़ते। कृष्ण यह नहीं कहते अर्जुन को इस से भ्रमित नहीं होना चाहिए, वह तो सब अस्थिर मन वालों को शिक्षा देना चाहते थे। संदेह के उठते ही कृष्ण ने प्रत्येक संदेह का निवारण किया। उन्होंने कहा अर्जुन इन 3 अवस्थाओं में से होकर जाते समय बुद्धि कुछ घटनाओं को अपनी पकड़ में रखती हैं, लेकिन शरीर की मृत अवस्था होने पर वह भी नष्ट हो जाती है, और एक ही झटके में सब विस्मृत हो जाता है। स्मरण शक्ति बुद्धि की क्रिया है आत्मा कि नहीं।
विचार करो कि अभी तुम निश्चित रूप से यह नहीं बता सकते कि अमुक दिन ठीक 10 वर्ष पूर्व कहां थे। लेकिन 10 वर्ष पूर्व तुम थे, इसमें कोई संशय नहीं। नहीं थे, ऐसा नहीं कह सकते। तुम्हारे पूर्व जन्म की भी यही बात है। तब तुम थे, लेकिन ठीक - ठीक याद नहीं कर पाते कि कैसे और कहां थे। बुद्धिमान मनुष्य ऐसे संदेशों से न तो भ्रमित होता है और न व्यग्र होता है। आत्मा मरती नहीं शरीर से सर्वदा नहीं रहता।
श्री सत्य साई बाबा
गीता वाहिनी अध्याय ४ पृष्ठ ३५-३६
Krishna says,
“the wise person is not deluded by this (dheeras thathra na muhyathi).” He does not say that Arjuna should not be deluded by this; he intends to teach all wavering minds. Krishna solves every doubt as soon as it arises. He said,
“Arjuna! While passing through the three stages, the intellect (buddhi) somehow manages to keep some points
in its hold. But it too is destroyed when death comes to the body. At one stroke, all is forgotten. Memory is the function of the intellect, not of the Atma.
“Now consider this. You cannot now tell exactly where you were on a definite day, ten years ago, can you?
But you existed that day, ten years ago, without a doubt. You dare not deny your existence then. The same is the case of the life you lived before this one, although you may have no recollection of how and where. The wise person is not deluded by such doubts, nor agitated by them.
“The Atma does not die; the body does not stay.
Sri Sathya Sai Baba
Geetha Vahini, Chapter 4
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