गीता वाहिनी सूत्र - १७ || Geetha Vahini -17 || Sri Sathya Sai Baba || Geeta Jayanti festival || Power of Mind ( मनःशक्ति)
मनःशक्ति ( Power of Mind)
मनःशक्ति एक प्रबल विद्युत शक्ति की तरह है। इसको दूर से ही देखना चाहिए। इसको छूने या संपर्क में नहीं आना चाहिए। छू कर देखो; तुम्हारी राख बन जाएगी। इस प्रकार संपर्क या मोह से, मन को तुम्हें नष्ट करने का मौका मिल जाता है। तुम्हारा इससे दूर ही रहना अच्छा है। चतुराई से अपनी भलाई के लिए ही इसका उचित उपयोग करना चाहिए।
जिस परम सुख में स्थितप्रज्ञ डूबा रहता है वह उसे बाह्य वस्तुओं से नहीं मिलता और उसे बाह्य सुख की आवश्यकता भी नहीं है। आनंद, प्रत्येक के स्वभाव का हिस्सा है। जिनके चित्त शुद्ध हैं उन्हें आत्मा में, आत्म साक्षात्कार द्वारा ही परम आनंद मिलता है। यह आनंद निज की कमाई है। यह प्रत्यक्ष है इसका अनुभव व्यक्ति स्वयं ही करता है।
श्री सत्य साई बाबा
गीता वाहिनी अध्याय ५ पृष्ठ ४७
The faculty of the mind is like a strong current of electricity. It has to be watched from a distance and not be contacted or touched. Touch the current, and you are reduced to ashes. So too, contact and attachment give the
mind the chance to ruin you. The farther you are from it, the better. By skillful methods, you have to make the best
use of it for your own welfare.
The bliss in which the person of steady wisdom is immersed does not arise from external objects; that person
has no need of them, either. Bliss is in everyone as part of their very nature. Those with pure consciousness find
the highest bliss in the realization of their own reality, the Atma. That joy is self-earned, so to say. It is known only to the individual; it is self-evident.
Sri Sathya Sai Baba
Geetha Vahini, Chapter 5
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