गीता वाहिनी सूत्र - ८ || Geetha Vahini -8 || Sri Sathya Sai Baba || Geeta Jayanti || दुःखों का वास्तविक कारण

     
             दुःखों का वास्तविक कारण

सब दुखों का वास्तविक कारण क्या है ? शरीर का मोह ही दुखों का कारण है। मोह से शोक, शोक से उसके निकट संबंधी स्नेह और तिरस्कार उत्पन्न होते हैं। यह दोनों ऐसी बुद्धि के परिणाम है जो कुछ वस्तु और स्थितियों को लाभकारी समझती है और अन्य कुछ वस्तुस्थितियों को अलाभकारी। ऐसा लाभ और हानि का विचार केवल भ्रम है। फिर भी लाभकारी वस्तु में तुम्हारी आसक्ति होती है, और अन्य सबसे तुम्हें घृणा होती है। जहां एक है वहां दो दीखने का कारण माया या अज्ञान है। जिस अज्ञान ने अर्जुन को शोक में डुबोया था मैं इसी प्रकार का था; जहां केवल एक है वहां अनेक देखना।
'तत्वम' अर्थात आत्मा और परमात्मा की एकरूपता का ज्ञान ना होना ही समस्त अज्ञान का कारण है। इस सत्य को न सीखने वाला मनुष्य इस शोक संसार में गोते खाता रहता है। लेकिन जो इसे सीख कर इसी सत्य के चैतन्य जीवन व्यतीत करता है वह अवश्य शोक - मुक्त हो जाता है।
श्री सत्य साई बाबा
गीता वाहिनी अध्याय ३ पृष्ठ २९

What exactly is the cause of all grief? It is attachment to the body that produces grief as well as its immediate
precursors: likes and dislikes. These two are the results of the intellect considering some things and conditions as
beneficial and some other things and conditions as not. This is a delusion, this idea of beneficence and maleficence. Still, you get attached to objects that are considered beneficial, and you start hating the others. To see two where there is only one, that is ignorance, delusion (maya). The ignorance that
plunged Arjuna into grief was of this nature —seeing many, when there is only one.
Absence of the knowledge of the identity of “That (Thath)” and you (thwam) is the cause of all ignorance —
the word thathwa, used to mean principle, enshrines this great philosophical doctrine. If this truth is not learned, one has to flounder in the ocean of grief. But, if it is learned and if one lives in that consciousness, then one can be free from grief.

Sri Sathya Sai Baba
Geetha Vahini, Chapter 3

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