गीता वाहिनी सूत्र - २५ || Geetha Vahini -25 ||Sri Sathya Sai Baba || सहज कर्म
सहज कर्म केवल धर्म में ही, जो कि तुम्हारा स्वभाव है, तुम्हें धीरज रखना चाहिए। यदि कर्म को कर्तव्य का बोझ ही मानोगे तो कष्ट और कठिन परिश्रम सहन नहीं कर सकोगे। अस्वाभाविक व अपनाए हुए कर्म अ-सहज कर्म कहलाते हैं और अपने सच्चे स्वभाव को प्रकट करने वाले कर्म सहज कर्म कहलाते हैं। सहज कर्म तो आसान प्रतीत होंगे और अ-सहज कर्म हमेशा बोझिल लगेंगे। अ-सहज कर्म से अहंकार या "मैं कर्ता हूँ" की भावना उत्पन्न होकर परिणामस्वरूप थकान या घमंड, घृणा या धृष्टता प्रकट होगी। इस एक विषय पर विचार करो। व्यक्ति जब स्वस्थ होता है तब कोई भी उसकी कुशलता के बारे में नहीं पूछेगा। लेकिन बीमार या दुःख होने पर सभी पूछेंगे कि क्या हुआ और फिर चिंता युक्त प्रश्नों की झड़ी बांध देंगे। लेकिन यह चिंता क्यों ? मूल रूप में मनुष्य आनंदमय और सुखी है। आनंद उसका स्वभाव है। यही उसका सहज स्वभाव है। इसलिए जब वह खुश और स्वस्थ होता है तो किसी को आश्चर्य या चिंता नहीं होती, लेकिन शोक और पीड़ा उसके लिए अस्वाभाविक है। एक भ्रम के परिणामस्वरूप उसका स्वभाव उनसे घिर गया है। इसीलिए लोग चिंतित होकर यह पता लगाना चाहते हैं ...