गीता वाहिनी सूत्र - ४१ || Gita Vahini - 41 || Sri Sathya Sai Baba || Faith (श्रद्धा)
Faith (श्रद्धा)
श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति।। ४/३९
इस पवित्र आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति के लिए एक वस्तु आवश्यक है : निष्ठा (श्रद्धा )। शास्त्रों और शिक्षकों से ज्ञान प्राप्ति में अटल विश्वास। निष्ठा से उत्पन्न प्रेरणात्मक उत्साह के बिना कोई छोटे से छोटा कार्य भी मनुष्य संपन्न नहीं कर सकता। इसलिए अब तुम स्वयं देख सकते हो कि ज्ञान-प्राप्ति के लिए यह कितना आवश्यक है। श्रद्धा वह अतुलनीय तिजोरी है जिसमें शम, दम, उपरति, तितिक्षा और समाधान, रूपी मूल्यवान वस्तु संचित हैं।
निष्ठा तो केवल पहला कदम है। मेरे उपदेश को ग्रहण करने की तुममें तीव्र उत्कंठा होनी बहुत आवश्यक है। इसके साथ ही तुम्हें सचेत रह कर आलस्य से बचना होगा। तुम ऐसी संगति में पड़ सकते हो जो बेमेल प्रकृति की हो एवं प्रोत्साहन न देने वाली हो। ऐसी संगति के दुष्ट प्रभाव से बचने और अपने मन को शक्तिमान करने के लिए और उससे हमेशा के लिए बचने के लिए, इंद्रियों पर नियंत्रण रखना आवश्यक है।
श्री सत्य साई बाबा
गीता वाहिनी अध्याय ११ पृष्ठ ९८-९९
To acquire this sacred spiritual wisdom, one thing is essential: Faith (sraddha), steady faith in the scriptures, in the teachers, and in the acquisition of wisdom. Without earnestness born of faith, no task, however tiny, can be
accomplished. Therefore, you can see how essential it is for earning wisdom. Faith is the incomparable treasurechest of tranquility (sama), control of the outer senses (dama), control of the mind by withdrawal of the senses (uparathi), fortitude (thithiksha), and mind-control by equanimity (sama-dhana), each one a coveted possession.
“Faith is only the first step. You must also yearn to imbibe the teachings I am imparting. This is necessary.
Along with these, you must also be vigilant; don’t yield to sloth. Again, you may fall into company that is not
congenial or encouraging. To escape the evil influence of such company and to strengthen your mind to avoid it altogether, mastery over the senses is required.
Sri Sathya Sai Baba
Geetha Vahini, Chapter 11.
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