गीता वाहिनी सूत्र - ३९ || Gita Vahini - 39 || Sri Sathya Sai Baba || देहात्मभाव




      देहात्मभाव दूर करने से परमात्मा प्राप्ति

एक बात निश्चय जानो। चाहे जितनी दूर तक जाओ, अनेकों गुरु बनाओ, उनकी सेवा करो, किंतु जब तक "मैं शरीर हूँ"  इस भ्रम को दूर नहीं हटा दिया जाएगा, परमात्मा प्राप्त नहीं हो सकता। इस भ्रम के रहते, सब ध्यान, सब जप, सभी तीर्थों के जल में स्नान भी तुम्हें सफलता प्रदान नहीं कर सकेंगे। तुम्हारी संपूर्ण प्रयत्न छिद्र वाले बर्तन से कुएं से पानी निकालने की तरह व्यर्थ हो जाएंगे।
अपने कर्तव्य करने वाले गृहस्थ जो अपने आश्रम धर्म का पालन करते हैं, सही मार्ग पर चलते हैं और निरंतर परमात्मा के ध्यान में मग्न रहते हैं ऐसे साधुओं से सदैव उत्तम माने जाएंगे। ऐसे गृहस्थाश्रिमयों को अपने लक्ष्य की प्राप्ति हो जाती है।

श्री सत्य साई बाबा
गीता वाहिनी अध्याय ११ पृष्ठ ९६

One thing is certain. As long as the delusion that one is the body is not cast aside, God cannot be realized —
however far one may wander, whatever the number of gurus one might select and serve. Stick to that delusion and all the meditation, all repetitions of the name, all the waters of all the holy bathing places that you bathe in cannot
win success for you! All your effort is as useless as trying to bail water in a vessel ridden with leaks.
Householders who carry out their duties are any day preferable to such seekers (sadhus); they follow the dharma of their stage of life (asrama), and they tread the correct path in unceasing remembrance of the Lord, so these householders realize the goal.

Sri Sathya Sai Baba
Geetha Vahini, Chapter 11.
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