गीता वाहिनी सूत्र - ३० || Geetha Vahini - 30 || Sri Sathya Sai Baba || वर्ण-व्यवस्था


                 वर्ण-व्यवस्था

चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः।

तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम्।।4.13।।

लेकिन अर्जुन! धर्म स्थापना, जिसके लिए मैं आया हूं उसको करने का एक ही ढंग है। वह है 'चातुर्वर्ण्यम्' अर्थात गुण और कर्मों के आधार पर लोगों की चौमुखी व्यवस्था। संसार को चलाने के लिए वर्ण-व्यवस्था बहुत ही आवश्यक है। इसका महत्व समझना सरल नहीं है। कुछ लोग इस विश्वास में बहक जाते हैं की वर्ण-व्यवस्था लोगों में भेद-भाव फैलाकर मनुष्य को मनुष्य से दूर कर देती है। इस समस्या पर यदि विवेक-बुद्धि द्वारा विचार किया जाए तब सत्य क्या है स्पष्ट मालूम हो जाएगा। इस निर्णय पर पहुंचना की वर्ण-व्यवस्था कल्याणकारी नहीं, अज्ञान है। ऐसे निर्णय से अव्यवस्था बढ़ती है। मैंने यह व्यवस्था संसार के कल्याण की वृद्धि के लिए स्थापित की है, यानी 'लोकक्षेम' के लिए वर्ण से मनुष्य को सधर्मी समान प्रकृति के कार्यों को करने में सहायता और संतोष मिलता है। इसके बिना मनुष्य एक क्षण भी सुख नहीं पा सकता।
कार्यों की सफलता के लिए वर्ण प्राणवायु ही है। जिनमें सत्व गुण है, जिन्होंने ब्रह्मत्व को समझ लिया है, जो आध्यात्मिक, नैतिक और उन्नत जीवन का पोषण करते हैं और जो दूसरों को उनमें निहित सत्य स्वभाव के आनंद का अनुभव कराने में सहायक होते हैं वे ब्राह्मण हैं। जो योग्य, स्वस्थ, राजकीय-कानून, न्याय और साथ ही देश के कल्याण, समृद्धि और जनता के लिए निर्देशित नैतिक विधान की रक्षा करते हैं, जो दुष्ट और पापियों का दमन करते और पीड़ित व निर्बल की सहायता करते हैं क्षत्रिय हैं।
जो उचित मर्यादा में लोगों के लिए संग्रह और वितरण करते हैं जिससे उनका शारीरिक जीवन सुखी बना रहे, वे वैश्य हैं। जो सेवा-कार्य द्वारा मनुष्य कल्याण की नींव डालते हुए शक्ति और पुष्टता प्रदान करते हैं वे शूद्र कहलाते हैं। मैंने इन चारों वर्णों को इस प्रकार व्यवस्थित किया है। यदि वह सब वर्ण अपने निर्धारित कर्तव्यों को करें तो संसार की पूर्ण रूप से उन्नति होगी। इस व्यवस्था के परिणामस्वरूप उत्तरदायित्व का विभाजन कर दिया गया है, जिससे व्यक्ति शोक और भय रहित होकर सुखी और एकात्म सामाजिक जीवन व्यतीत करे। यह वर्ण-व्यवस्था भारत पर भगवान की कृपा का एक उदाहरण है।

श्री सत्य साई बाबा
गीता वाहिनी अध्याय ८ पृष्ठ ७५-७६

“But Arjuna, there is one method of reviving dharma, the task for which I have come. That is the organiza￾tion of the four castes based on the karma and the qualities of the people. The caste system is essential for the functioning of the world. Its significance is not easy to grasp. Some mislead themselves into the belief that it causes unrest and divides people from one another. If the problem is reasoned out, then the real truth will become clear. To conclude that the caste system is not beneficial shows only ignorance. Such a judgement creates confusion. I have established this organization in order to promote the welfare of the world. The caste system helps people engage themselves in acts that they find congenial and fulfil them. Without it, people cannot earn happiness for a moment. For successful activity, the caste is the very breath.
“The brahmins are those endowed with the pure and serene quality (sathwa-guna), who have understood the Brahman principle (Brahma-thathwa), who foster spiritual, moral, and progressive living, who help others to earn
the bliss of visualizing the reality of their nature.
“The warriors (kshatriyas) are those who stand by and guard the sound political system, law, and justice, as well as the welfare and prosperity of the country and the moral order laid down for the people, and who keep
under control the wicked and the immoral and come to the rescue of the weak and the distressed.
“The business people (vaisyas) are those who store and supply within proper limits to the people at large the
wherewithal for happy physical living.
“The labourers (sudras) lay the foundation for human welfare by service activities; they provide the strength and sinews.
“I have laid down these four castes in this manner. If they carry out their assigned duties, humanity will attain all-round progress. As a result of this system, a division of service is brought about; the individual leads a happy
harmonious social life, without any grief or fear. This caste system is an example of the grace that the Lord has bestowed on India (Bharath).”

Sri Sathya Sai Baba
Geetha Vahini ,Chapter 8.
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