गीता वाहिनी सूत्र - ३३ || Geetha Vahini - 33 || Sri Sathya Sai Baba || Pundits
पंडित
कर्मण्यकर्म यः पश्येदकर्मणि च कर्म यः।
स बुद्धिमान्मनुष्येषु स युक्तः कृत्स्नकर्मकृत्।।
यस्य सर्वे समारम्भाः कामसंकल्पवर्जिताः।
ज्ञानाग्निदग्धकर्माणं तमाहुः पण्डितं बुधाः।।
धनंजय ! पंडित कहलाने का अधिकारी वही हो सकता है जिसने कर्म और अकर्म के बीच का अंतर स्पष्ट रूप से समझ लिया हो। पुस्तक में दिए गए विषय को दिमाग में भर लेने से ही कोई पंडित नहीं बन जाता। पंडित की बुद्धि सत्य को प्रत्यक्ष कर दिखाने वाली होनी चाहिए, सम्यक दर्शन। ऐसी दृष्टि पाने से कर्म प्रभावहीन हो जाते हैं व हानिकारक नहीं रहते। ज्ञान की अग्नि में कर्म को जलाकर नष्ट कर देने की शक्ति है।
जो सुख के लिए पदार्थों पर निर्भर रहते हैं या इंद्रिय सुखों का पीछा करते हैं, प्रवृत्तियों और इच्छाओं से प्रेरित है, वही कर्म बंधन में जकड़े जाते हैं। लेकिन जो सबसे मुक्त हैं उन्हें शब्द, स्पर्श, रस, गंध या अन्य इन्द्रियों के आकर्षण का लालच प्रभावित नहीं कर सकता। सन्यासी के यही लक्षण हैं, वह अविचलित रहता है। ज्ञानी अपने में ही परमानंदमय है और दूसरों पर इसीलिए निर्भर नहीं रहता। वह कर्म में अकर्म पाता है और अकर्म में कर्म। कर्म करते हुए भी उसका उस पर प्रभाव नहीं पड़ता। उसका ध्यान भी कर्मों के फल पर नहीं है।
श्री सत्य साई बाबा
गीता वाहिनी अध्याय १० पृष्ठ ८७
“Dhananjaya! People are entitled to be called pundits only if they have seen clearly the distinction between
action (karma) and non-action. If they have only stuffed in their head what they read in books, they are not pundits. The pundit must have an intellect that grants the vision of the truth. When that vision is gained, all action becomes ineffective and harmless. The fire of wisdom has the power to consume and burn karma."
Whoever is dependent on objects for happiness or pursues sensory pleasures, whoever is motivated by impulses and desires, is bound by karma. But those free from these cannot be affected by
the temptations of sound, touch, form, taste, smell and other attractions of the senses. Such is the true renunciant (sanyasin) —He is unmoved. Wise people are supremely happy by themselves, without the need to be dependent
on other things. They find action in non-action and non-action in action. They may be engaged in action but they are not affected in the least. They have no eye on the fruit.
Sri Sathya Sai Baba
Geetha Vahini, Chapter 10.
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