गीता वाहिनी सूत्र -४४ || Gita Vahini - 44 || सच्चे संन्यासी
सच्चे संन्यासी कर्म में तीव्रता से व्यस्त होते हुए भी जो कर्म के फल का त्याग करते हैं, वे मुझे बहुत प्रिय हैं। वे ही सच्चे सन्यासी और सच्चे त्यागी हैं। मुझे वे लोग प्रिय नहीं हैं जो शास्त्रोक्त अग्निहोत्री त्यागते हैं तथा खाने, सोने व इन्द्रिय सुखों में लालसा रखने के अतिरिक्त कुछ नहीं करते व कुंभकर्ण की तरह आलस्य में समय नष्ट करते हैं। ऐसे समय नष्ट करने वाले मुझ तक कभी नहीं पहुंच सकते। जिसने अपनी इच्छाओं का पीछा नहीं छोड़ा है, वह कभी योगी नहीं बन सकता, फिर चाहे वह कितनी भी साधना करे। जो अपने को इंद्रियों में फँसने से बचाकर रखता है, जो अपने कर्म-फलों में आसक्ति नहीं रखता वहीं सर्व-संग परित्यागी (सब प्रकार के मोह को त्यागने वाला) बन सकता है। श्री सत्य साई बाबा गीता वाहिनी अध्याय ११ पृष्ठ १०० Those who renounce the fruits while actively engaged in action are very dear to Me; they are the true renouncers (sanyasins). I have no affection for those who give up the ritual fire and desist from all activity e...