श्री सत्य साई भजन मार्गदर्शिका || प्रश्नोत्तर


भजन गायन पर भगवान का परामर्श

1.स्वामी, भावना के साथ भजन कैसे गाएं ?

"कुछ लोग भजन में उपस्थित होकर अपने होंठ बिल्कुल नहीं हिलाते। वे कह सकते हैं कि वह भजनों को अपने अंदर मानसिक रूप में गा रहे हैं। यह सही नहीं है। यदि तुम्हारे अंदर भक्ति भावना है तो यह भजन में आवाज के माध्यम से व्यक्त होनी चाहिए। केवल तभी इसे संकीर्तन कहा जा सकता है - दूसरों के साथ एकरूपता में गाना। तुम्हें भगवान के नाम को जोर से, ऊंचे स्वर में जहां तक आवाज जा सके अवश्य गाना चाहिए। केवल तभी भगवान पूर्ण रूप में उत्तर देंगे और अपनी कृपा की वर्षा करेंगे। एक डूबते हुए आदमी को बचाने कोई नहीं आएगा यदि उस की चिल्लाहट मंद (धीमी) हो। जब वह जोर से ऊंची आवाज में चिल्लाएगा केवल तभी उसकी आवाज सुनी जाएगी और लोग उसकी रक्षा के लिए दौड़ेंगे। संकीर्तन का अर्थ है, भक्ति और उत्साह के साथ गाना।"
पूर्णचंद्र सभागार, 3 मार्च, 1992

2 . स्वामी, नामस्मरण कैसे महत्वपूर्ण है ?

"हमने नाम संकीर्तन को साई गतिविधियों के प्रमुख कार्यक्रमों में से एक के रूप में स्वीकार किया है। तुम्हारी रसनाओं पर भगवन्नाम को सदैव नर्तन करना चाहिए। तुम में से कुछ पूछते हैं कि हमें अपने जिह्वा से भगवान के नाम का उच्चारण क्यों करना चाहिए ? क्या अपने मन में भगवान का चिंतन करना पर्याप्त नहीं है ? भगवन्नाम एक दीप्तिमान दीप के समान है (मणिदीप)। पवित्र नाम के स्वरूप की तुलना उस महान पवित्र गाय से की जा सकती है, जो हमें वह सब प्रदान करती है जो हम चाहते हैं। भगवान के रूप को नाम की सहायता से जो कि रस्सी के समान है, अपने हृदय से बांधना चाहिए। हृदय एक स्तंभ के समान है जहां उसे बांधा जाना चाहिए। तुम्हारा मुख शरीर रूपी घर का मुख्य प्रवेश द्वार है। जब तुम लालटेन को मुख्य द्वार पर रखते हो तो प्रकाश अंदर और बाहर दोनों ओर से दिखाई देता है। इस प्रकार पवित्र नाम की पावन ज्योति अंदर और बाहर प्रकाश बिखेरती है।"
समर शावर्स इन वृंदावन, 1972

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