श्री सत्य साई भजन मार्गदर्शिका- 3|| Guidelines for Sai Bhajan- 3
3. एक गायक की भूमिका और उत्तरदायित्व (ROLES AND RESPONSIBILITIES OF A SINGER)
_"भजन, गायन की वह प्रक्रिया है जो हृदय से निकलती है, न कि होठों से या जुबान से। भगवान की महिमा के स्मरण से हृदय से निकलती है।"_ _बाबा (श्री सत्य साई वचनामृत १०)
नाम संकीर्तन एक माध्यम है जिसे वर्तमान समय में शांति और प्रेम के पोषण के लिए हमारी स्वामी भगवान श्री सत्य साई बाबा ने निर्धारित किया है। भगवान बाबा ने गायकों के पालन एवं अभ्यास के लिए अनेकों प्रवचन और वार्तालाप की माध्यम से हमें पर्याप्त मार्गदर्शन और निर्देश दिए हैं।
भजन गायक नाम स्मरण को फैलाने का एक यंत्र है, जिसे भगवान ने प्रारंभ किया था, जब उन्होंने संसार को अपने अवतार होने की घोशणा की थी। भगवान के अवतारिक मिशन में एक गायक की भूमिका सर्वश्रेष्ठ और अति आवश्यक है।
साई भजन गाना अवतार के द्वारा हमें दिया गया एक जीवन पर्यंत सुअवसर(Life time opportunity) है। यह एक सेवा का शुभ अवसर है जो भक्तों की चिंता और तनाव को कम करके इस कलियुग में मन की शांति प्रदान करता है।
यह गायक का उत्तरदायित्व है कि वह अपने गायन की गुणवत्ता के द्वारा श्रोताओं की चेतना को दिव्यता की ओर ले जाए।
एक भजन गायक जो हृदय से गाता है वह हमें दिव्यता की सुंदरता और महानता तथा सांसारिकता की निरर्थकता और शून्यता का अनुभव कराता है।
भगवान बाबा ने गायकों के पालन एवं अभ्यास के लिए अनेकों प्रवचन और वार्तालाप की माध्यम से हमें पर्याप्त मार्गदर्शन और निर्देश दिए हैं।
3.1. भजन अभ्यास और स्वर संस्कार (Bhajan Practice and Voice culture)
🔹अग्र गायकों को अपनी आवाज को ठीक रखने के लिए निरंतर उस पर कार्य करना चाहिए। "मिताहार(उचित मात्रा में भोजन, न अधिक ठंडा न अधिक गर्म, शुद्ध सात्विक आहार), मित निद्रा(न अधिक और न कम सोना) और मित संभाषण(कम एवं धीरे बोलना)" इसमें सहायक होगा।
🔹भजन संयोजक समेत सभी गायक भजन प्रशिक्षण और अभ्यास सत्र(Bhajan Training-cum Practice session) में शामिल होने के लिए प्रतिबद्ध(Duty bound) होने चाहिए। इससे भजन की गुणवत्ता बढ़ाने में सहायता मिलेगी।
🔹अग्र गायक को संगीत एवं रागों का आधारभूत ज्ञान होना चाहिए ताकि गाते समय भजन की धुन की मधुरता सुनाई दे।
🔹आवाज को नियंत्रण में लाने की प्रक्रिया को स्वर संस्कार (Voice culture) कहते हैं ।यह गायकों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और स्वरों(जैसे अ,आ,ई,ऊ,ओ आदि) के अभ्यास के द्वारा अपनी आवाज की रक्षा और उसका पोषण करना चाहिए।
आवाज संगीत का एकमात्र जीवित उपकरण है। प्रत्येक व्यक्ति अनोखा है, उसी प्रकार प्रत्येक आवाज। हालांकि व्यक्तिगत सीमाएं व्यक्ति को व्यक्ति से अलग करती हैं, यह ध्यान देने हेतु अति महत्वपूर्ण है कि केवल यही उपकरण है जिसे स्वर मान, तीव्रता एवं नाद के गुण में परिवर्तन करके और उपरोक्त बताई गई विशेषताओं के द्वारा संवर्धित, संस्कारित किया जा सकता है और सुधारा जा सकता है।
आवाज के प्रशिक्षण के चार आधारभूत कदम
1. श्रवण :
एकाग्र होकर सुनना आधारभूत आवश्यकता है। बार-बार सुनने से मस्तिष्क में भजन की एक मानसिक तस्वीर बन जाती है। स्वर, धुन, लय, गति, शब्द, विस्तार, आवाज या वाद्य यंत्र के नाद की जाति, आदि मस्तिष्क में संग्रहीत हो जाती है। जितना गहराई से हम सुनते हैं उतनी ही अच्छी गुणवत्ता का भजन हम गा सकते हैं। मानसिक और शारीरिक तालमेल जितना बेहतर होगा आवाज की उत्पादकता उतनी ही बेहतर होगी।सामान्यतः प्रशांति निलयम में गाए जाने वाले भजनों को हम मापदंड मान सकते हैं। तथापि हम वर्षों तक पुराने भक्तों द्वारा गाये हुए पारंपरिक भजनों को भी दोहरा सकते हैं। अच्छे भजनों को सुनना, सीखने की ओर पहला कदम है।
(2) श्वास पर नियंत्रण-
यह भी स्वर संस्कार की ओर एक अति महत्वपूर्ण कदम है। यदि हम श्वास पर नियंत्रण कर लेते हैं तो हम गाते समय अपनी आवाज पर भी स्वामित्व पा लेते हैं। श्वास नियंत्रण आवाज में निखार, स्पष्टता,स्थिरता और विश्वास पूर्ण शब्दोच्चारण प्रदान करता है । इसलिए गायक को व्यक्तिगत अनुशासन का पालन करते हुए प्राणायाम और गहरी श्वास का अभ्यास करना चाहिए। इससे भजनों की लंबी पंक्तियां गाने में सहायता होगी ।
(3)अभ्यास (रियाज़) -
'अभ्यास आदमी को निपुण बनाता है।' एक अग्र गायक को कम से कम 3-4 भजनों को भजन सत्र के लिए अर्थ को समझते हुए, और भाव, धुन और ताल को ध्यान में रखते हुए बार- बार अभ्यास करना और तैयार करना चाहिए।
अभ्यास को 2 भागों में विभाजित किया जा सकता है:
अ) ऐसे भजन जिन्हें हम गा नहीं सकते परंतु गाना चाहते हैं ,उन्हें हम घर पर या अभ्यास सत्र में गा सकते हैं।
ब) जो भजन हमें आते हैं ,उन्हें दोहराना एवं पूर्णता के निकट लाना।
भजनों के नियमित अभ्यास से हम सभी मांशपेशियों और संपूर्ण स्वरोत्पादक प्रणाली को प्रशिक्षित करते हैं। एक और महत्वपूर्ण कारक अभ्यास के दौरान यह है कि गायन के साथ-साथ हमें अपने गायन को तीसरे व्यक्ति के समान सुनना भी चाहिए। यह हमें तेजी से आगे बढ़ने में सहायता करेगा। इसस प्रकार हम अपनी गलतियां और कमियाँ ढूंढ सकते हैं और उन पर कार्य कर सकते हैं। अभ्यास से स्वर यंत्र पर नियंत्रण होता है, गायक में आत्मविश्वास आता है, जो उसकी आवाज में साफ दिखाई देता है।
*भगवान बाबा ने गायकों को एक भजन का सौ बार अभ्यास करने का निर्देश दिया है।*
*४-ॐकारम् और "हरि ॐ" का एक स्वर में अभ्यास* विविध भजनों को सरलता से गाने में हमारी मदद करता है।
*५-शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य (फिटनेस)-*
गायन शारीरिक और मानसिक संचालन की क्रिया है। यह हमारी शारीरिक और मानसिक अवस्था का सामंजस्य है। अतः
शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य अच्छे एवं प्रसन्न गायन के लिए जरूरी है। नियमित व्यायाम, स्वास्थ्यप्रद संतुलित आहार और नियमित ध्यान या कोई अन्य तनाव मोचक व्यायाम हमारी तन्दरुस्ती के लिए जरूरी है। एक गायक की आवाज की भर्राहट (Voice cracking) को दूर करने के लिए भगवान ने जाॅगिंग का एक व्यायाम के तौर पर सुझाव दिया है।
3.2. भजन का चुनाव और उच्चारण
🔹 अग्र गायकों को आसानी से दोहराए जाने वाले भजन गाने चाहिए और ऐसे भजन नहीं लेने चाहिए जो धुन एवं लय में अति शास्त्रीय हो। अग्र गायक पर सभी भक्तगणों को साथ लेकर चलने, उन्हें प्रेरित और उत्साहित करने का उत्तरदायित्व होता है।
🔹 यदि अग्र गायक नया भजन गाना चाहता है, उसे पहले अभ्यास सत्रों में पर्याप्त बार गाना चाहिए, जिससे दूसरे गायक भजन की धुन और शब्दों से परिचित हो सकें, इस प्रकार वास्तविक भजन सत्र में भजन अच्छी प्रकार दोहराया जा सके।
🔹 गायक को श्रोताओं को ध्यान में रखकर जो भजन को दोहराएंगे, सही भजन का चुनाव करने में विवेकशील होना चाहिए। उदाहरणार्थ सार्वजनिक स्थानों पर सर्वधर्म भजन, और ग्रामीण श्रोताओं आदि के लिए सरल नामावली भजन गाने चाहिए । "समयम्" और "संदर्भम्" (समय और परिस्थिति) के अनुसार भजनों का चयन स्वामी का निर्देश है।
🔹 कोई भी भक्ति गीत, किसी भी भाषा में जिसे सभी दोहरा सकें, गाया जा सकता है।
🔹 गाते समय नामावली और गुणों के शब्दों का उच्चारण सही होना चाहिए एवं भजन गाते हुए शब्दों के अशुद्ध और अस्पष्ट उच्चारण से बचना चाहिए।
3.3. अर्थ का ज्ञान और जागरूकता
_"जब तुम भजन गाते हो तो उसके अर्थ को अपने ध्यान में रखो और भगवान के हर नाम के रूप और संदेश पर भी मनन करो।"_...बाबा (Sai Bhajan Mala, 30)
🔹उसे (गायक को) भारतीय महाकाव्यों, पुराणों और दूसरे धर्मों के उपाख्यानों का भी अच्छा ज्ञान होना आवश्यक है ताकि वह भजनों को पूर्ण भाव और भावना के साथ गा सके।
🔹उसे हिंदी और संस्कृत के शब्दों का अच्छा ज्ञान होना चाहिए ताकि भगवान के गुणों का गायन सही भावना एवं शब्दों के अर्थ की पूर्ण जागरूकता के साथ हो।
3.4. व्यक्तिगत आचरण-
🔹 सभी भजनो सत्रों में स्वैच्छिक भागीदारी- जहाँ कहीं आयोजित हों-बिना इस भेदभाव के कि हम केवल बड़े केन्द्रों में ही गायें।
🔹 समय प्रबंधन और समय की पाबंदी एक अच्छे गायक के लिए अति आवश्यक है। अग्र गायकों को भजन सत्र से 15 मिनट पहले पहुँचने, मौन बनाए रखने, इधर उधर देखे बिना स्थिर बैठने जैसे संगठन के सभी नियमों का सख्ती से पालन करना चाहिए।
🔹 यदि कोई अग्र गायक भजन में नहीं आ सकता तो अग्र गायक को भजन प्रभारी को अपनी अनुपस्थिति की पूर्व सूचना देनी चाहिए ।
🔹अनुशासन और आदर्श परिधान में, व्यक्तिगत विकास, स्वच्छता एवं सभ्यता में भी अपेक्षित है क्योंकि श्रोता अचेतन रूप से अग्र गायक की नकल करने की कोशिश करते हैं। सामान्यतः अग्र गायकों को साधारण और अच्छा परिधान पहनने चाहिए और भजन सत्र में भड़कीले वस्त्र नही पहनने चाहिए।
🔹 भजन सत्र के दौरान किसी तरह के इशारे/हलचल या बातचीत करने की अनुमति नहीं है। बहुत आवश्यक होने पर संदेश को एक परची पर लिख कर दूसरों को कम से कम व्यवधान डाले पहुंचा सकते हैं।
🔹 व्यक्तिगत साधना जैसे ध्यान, साई साहित्य का अध्ययन, सेवा गतिविधि में भाग लेना, सत्संग, प्रेम और समत्व प्रदर्शित करना एक गायक के लिए आवश्यक है।
🔹अपने अंदर अहंकार और दर्प के अंशों को दूर करने में सचेतन प्रयास की आवश्यकता है और आध्यात्मिक दृष्टिकोण के विकास हेतु प्रयत्न करना जरूरी है।
🔹सामान्यतः अग्र गायकों को दूसरों के अनुकरण हेतु अपना एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए।
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