श्री सत्य साई भजन मार्गदर्शिका- 2 || Guidelines for Sai Bhajan- 2

          भजन की विधि एवं निर्देश
(Bhajan Procedure and Guidelines)

2.1.भजन केंद्र पर तैयारी

🔹भजन प्रारंभ होने से कम से कम 30 मिनट पहले भजन हाल और मंदिर तैयार होने चाहिए।
🔹भजन हाल के बीच में महिला एवं पुरुषों के अलग-अलग बैठने के लिए "पाथ" तैयार करना चाहिए।
🔹भगवान श्री सत्य साई बाबा का चित्र आकर्षक ढंग से कुछ ऊंचे स्थान पर रखना चाहिए, जिससे सभी भक्त इसे आसानी से देख सकें।
🔹भगवान के चित्र पर एक सुंदर हार चढ़ाएं - आडंबर से बचें।

*आध्यात्मिक महत्व-*

_जब हम भगवान के चित्र पर माला पहनाते हैं तब हमें इसके पीछे छिपे हुए अर्थ को समझना चाहिए, जो कि माला के धागे के रूप में भगवान के पितृत्व और माला में गुंथे हुए अलग-अलग फूलों के रूप में मनुष्य के भ्रातृत्व के महत्व को दर्शाता है।_
🔹भगवान के चित्र के दोनों और दीपक तैयार रखें जिनमे पर्याप्त मात्रा में तेल हो, जिससे कि संपूर्ण भजन सत्र में दीपक प्रज्ज्वलित रह सकें।

*आध्यात्मिक महत्व-*

_तेल हमारी वासनाओं या नकारात्मक प्रवृतियों का प्रतीक है; बाती अहंकार का प्रतीक है, जिसे जल जाना चाहिए और ज्योति ज्ञान या प्रज्ञान के प्रकाश का प्रतीक है।_
🔹एक सौम्य अगरबत्ती जलाएं जिसमें अधिक धुआं ना हो, क्योंकि यह अग्र पंक्ति में बैठे गायकों के गले को अवरुद्ध कर सकता है।

*आध्यात्मिक महत्व :*

_हमें अपने जीवन को उस अगरबत्ती के समान बनाना चाहिए जो स्वयं जलते हुए सुगंधि फैलाती है। इसी प्रकार हमें अपने देह चेतना से ऊपर उठकर प्रेम और सेवा की सुगंध को फैलाना चाहिए ।_

🔹साई भजन भजन सभाओं में सर्वधर्म एकता के प्रतीक के रूप में वेदी के साथ सर्व धर्म चिह्न भी रखा जा सकता है।

🔹एक साफ कपड़े से ढकी हुई भगवान के लिए कुर्सी को हाल में पुरुषों की तरफ रखना चाहिए, साथ में एक स्टूल पर ढका हुआ शुद्ध पेयजल का गिलास रखें। स्वच्छ धुले हुए एवं सही प्रकार से तह किए गए रुमाल कुर्सी की दोनों बाजुओं पर रखें।

*आध्यात्मिक महत्व :*

_हमारे सर्वव्यापक भगवान भजन की कार्यवाही के साक्षी हैं क्योंकि उन्होंने आश्वासन दिया है कि जहां उनकी महिमा का गान होगा वह उपस्थित रहेंगे।_

🔹आरती विभूति और घंटी को पहले से ही तैयार कर के रख लेना चाहिए। केवल कपूर की आरती ही भगवान को अर्पित करनी चाहिए ना कि तेल व घी की।

*आध्यात्मिक महत्व :*

_जब आरती की जाती है तब कपूर पूर्ण रुप से जल जाता है, बिना किसी अवशेष छोड़े। इसी प्रकार हमें भी भजन के समापन पर अपनी सभी इच्छाओं और नकारात्मक प्रवृतियों को बिना किसी अंश छोड़े जला देना चाहिए।_
🔹बैठने की व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि पुरुष एक तरफ और महिलाएं एक तरफ, एक के पीछे एक उचित पंक्तियों में होने चाहिए। भजन अग्र गायकों और वाद्य वादकों को अग्रिम पंक्ति में बैठना चाहिए ।
🔹भक्तों के लिए पर्याप्त रोशनी और पीने का पानी उपलब्ध होना चाहिए।
🔹एक सेवादल को भजन स्थान के प्रवेश द्वार के निकट भजन के क्षेत्र से थोड़ा दूर साई साहित्य के विक्रय की जिम्मेदारी देनी चाहिए।
🔹 (i)पुरुषों और महिलाओं के जूते चप्पल अलग अलग रखने के लिए
(ii) पेयजल की उपलब्धि के लिए और
(iii) साई साहित्य की बिक्री के लिए उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
 
             *2.2 भजन सत्र की तैयारी*

🔹प्रत्येक साई केंद्र के पास हारमोनियम और मंजीरा/ डफली /ताल आदि होने चाहिए।
🔹सभी भजन गायकों को भजन आरंभ होने से 10 मिनट पहले अपना स्थान ग्रहण करना आवश्यक है।
🔹जो भजन गाए जाने वाले हैं, उनकी सूची गायकों के नाम के साथ (संभव हो तो श्रुतियों के साथ) भजन सत्र से पूर्व तैयार कर ली जानी चाहिए।
🔹अग्र गायकों को विशेष रूप से साधारण और सभ्य पोशाक में अच्छी तरह तैयार होकर आना चाहिए। उनका कार्य सिर्फ भजन का नेतृत्व करना ही नहीं है बल्कि अपने स्वभाव से दूसरों के लिए आदर्श प्रस्तुत करना भी है।
🔹वह व्यक्ति जिन्होंने आरती करनी है और साई संदेश का वाचन करना है वह किनारे की पंक्तियों में अपना स्थान ग्रहण करें।
🔹गायकों के मध्य बैठने के बीच कोई स्थान खाली नहीं छोड़ना चाहिए । यदि खाली स्थान है तो उसे भजन आरंभ होने से पूर्व भर देना चाहिए।
🔹आदर्श रूप में भजन का प्रवाह इस प्रकार होना चाहिए कि पहले हम धीमे और मधुर भजनों से प्रारंभ करें। सत्र के मध्य में मध्यम गति के भजन और अंतिम 20 मिनट में केवल द्रुत लय के भजन ही गाए जाने चाहिए, जिससे कि पूरे सत्र में भजन की गति (वेग) बना रहे।
🔹भजन गाने से पूर्व आलाप नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह भजन सत्र की गतिशीलता एवं वेग को धीमा कर देता है।
🔹भजन प्रारंभ होने के बाद आपस में बातचीत या किसी प्रकार का संवाद (इशारों के माध्यम से) बिल्कुल नहीं होना चाहिए। यदि आवश्यक हो तो पर्ची पर लिखकर दे सकते हैं, इस जागरुकता के साथ कि भगवान कुर्सी पर बैठे हुए हमारा भजन सुन रहे हैं।
🔹यदि सत्र में तबला वादक उपस्थित है तो भजनों की सूची श्रुति के साथ पहले ही उसे दे देनी चाहिए, जिससे वह बिना किसी बाधा के उसके अनुसार तबला बजा सके।
🔹भजन प्रारंभ होने के बाद किसी भी भक्त को फूल ,हार/ प्रसाद आदि चढ़ाने के लिए आगे वेदी (मंदिर) के पास आने की अनुमति नहीं देनी चाहिए, चाहे वह संगठन में किसी भी पद पर हो। भजन हाल के प्रवेश द्वार पर एक पात्र की व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे वह फूल आदि उसमें रखे जा सकें और आरती के बाद भगवान को अर्पित किए जा सकें।
🔹भजन सत्र के समय मोबाइल फोन बंद कर देना चाहिए।
🔹यदि सार्वजनिक उद्घोषणा प्रणाली (P.A. System) उपलब्ध है तो उसे भजन सत्र प्रारंभ होने से पहले ही लगाकर और तैयार करके रखना चाहिए। इसमें किसी प्रकार की गड़बड़ी भजन गायकों और भक्तों का ध्यान भंग करेगी। विशेषतः एक प्रशिक्षित सेवादल को कुशलता से पी.ए.सिस्टम का नियमन करना चाहिए। उसे कुशाग्र, फुर्तीला और एक अच्छा प्रत्युत्पन्नमति वाला होना चाहिए।
   
          *2.3. प्रसादम्*

*प्रसाद वितरण के संबंध में भगवान बाबा के द्वारा दिया गया निम्नलिखित उद्धरण अनुकरणीय है, जो कि बिल्कुल स्पष्ट है :*

_"श्री सत्य साई सेवा समिति के सार्वजनिक भजन केंद्र पर समिति भजन में विभूति के अतिरिक्त अन्य किसी प्रसाद का वितरण नहीं होना चाहिए। किसी भी खाद्य वस्तु की भेंट को टालना चाहिए। नाम स्वयं ही सर्वश्रेष्ठ पवित्र करने वाली भेंट है जोकि बांटी जा सके। तुम विभूति को प्रसाद के रूप में दे सकते हो; यह पर्याप्त है। यह सबसे बहुमूल्य और प्रभावी प्रसाद है।"_

        *2.4. भजन सत्र की विधि एवं क्रम*

वेद मंत्र उच्चारण/ अष्टोत्तरम्/ साई गायत्री और दूसरे श्लोकों को भजन सत्र से पहले ही पूरा कर लेना चाहिए।
भजन सत्र का कुल समय एक घंटा होना चाहिए जिसमें आरती और घोषणाएं आदि शामिल होनी चाहिए। भजन सत्र का क्रम इस प्रकार है :

 i. तीन बार ओम का उच्चारण
ii. गणेश भजन
iii. इसके उपरांत गुरु भजन, देवी भजन इत्यादि
iv. एक भजन सत्र में कम से कम एक सर्वधर्म भजन और एक भगवान बाबा पर भजन अवश्य होना चाहिए। अन्य देवी देवताओं के भजन भी भजन सत्र के अंतराल में रख सकते हैं।
v. यदि उपयुक्त सुविधा उपलब्ध है तो भगवान की दिव्य वाणी में उनका भजन अंतिम भजन के रूप में (CD प्लेयर या अन्य किसी तरह) बजाया जा सकता है।
vi. सर्वधर्म प्रार्थना "ॐ तत् सत् श्री नारायण तू" गाई जानी चाहिए ।
vii. 1 मिनट का मौन
viii. "असतो मा सद्गमय..." का उच्चारण अग्र गायक के द्वारा ही प्रारंभ होना चाहिए।
ix. दिव्य संदेश/ सुविचार का वाचन (3-5 मिनट)
x. उद्घोषणाएँ (यदि कोई है) की जा सकती हैं।
xi. मंगल आरती, केवल कपूर के द्वारा
xii. ॐ शांतिः शांतिः शांतिः
xiii. "समस्त  लोकाः सुखिनो भवंतु..." का तीन बार उच्चारण
xiv. ॐ शांतिः शांतिः शांतिः
xv. जयकारा "जय बोलो भगवान श्री सत्य साईं बाबा की.....जय"
xvi. विभूति प्रसाद वितरण "परमं पवित्रं..." का उच्चारण करते हुए
xvii. भक्तों के शांतिपूर्वक प्रस्थान के लिए प्रशांति निलयम की तरह साई गायत्री की ऑडियो को चलाया जाना चाहिए।

 _१- पुरुष अग्र गायक से प्रारंभ करके बारी-बारी से पुरुष और महिला अग्र गायकों द्वारा भजन गाए जाने चाहिए,और समूह द्वारा प्रत्येक पंक्ति को समान धुन और लय में दोहराना चाहिए।_
_भजन की दो गति(लय) होनी चाहिएं : मध्य और द्रुत। भजन की अंतिम पंक्ति को दोनों लयों में दो दो बार गाना चाहिए। भजन की समाप्ति पर भजन की प्रथम पंक्ति को सभी के द्वारा विलंबित लय में गाया जाना चाहिए।_
_२- आरती करने वाले भक्त को छोड़कर मंगल आरती के समय सभी भक्तों को अपने-अपने स्थान पर बैठे रहना चाहिए ।"नारायण नारायण..." प्रारंभ होते ही आरती की घंटी बंद कर देनी चाहिए। आरती करने वाले भक्तों को उपस्थित जनसमूह को आरती दिखानी चाहिए।_
_३- सामान्य भजन सत्र में मंगल आरती केवल पुरुष भक्तों द्वारा ही की जानी चाहिए।_
_४- "परमं पवित्रं..." सब के द्वारा बिना किसी ताल की सहायता या ताली की अधिकतम तीन बार उच्चारण करना चाहिए।_
   
       *2.8. नगर संकीर्तन सत्र के लिए दिशा-निर्देश निम्नलिखित हैं :*

🔹प्रत्येक समिति के लिए नगर संकीर्तन की आवृत्ति कम से कम सप्ताह में एक बार होनी चाहिए।
🔹समिति के पास इस गतिविधि के लिए कम से कम पांच से छह सदस्य होने चाहिएँ।
🔹यातायात के प्रबंधन में सहायता हेतु समिति के पास सेवादल होने चाहिएँ।
🔹भक्तों के एकत्रित होने के पश्चात भगवान की वेदी के सम्मुख रखे तेल के दीपक के अतिरिक्त कक्ष की सभी बत्तियां बंद कर देनी चाहिए।
🔹नगर संकीर्तन के आरंभ से पहले मौन बनाए रखना आवश्यक है।
🔹भक्तों को कम से कम संचलन (Movement) के साथ अपना स्थान ग्रहण करके ॐकारम् से पहले ध्यान के लिए बैठ जाना चाहिए।
🔹सभी एक साथ 21 ॐकारम का उच्चारण करें।
🔹इसके उपरांत अच्छी आवाज, उच्चारण और अच्छी श्रुति वाले एक या दो व्यक्ति सुप्रभातम का नेतृत्व करें ।दूसरे भी एकरूपता के साथ इस में सम्मिलित हो सकते हैं।
🔹तदुपरांत 1 मिनट का मौन
🔹"असतो मा सद्गमय..." का उच्चारण (गायन)
🔹इसके पश्चात नगर संकीर्तन में निम्न क्रमानुसार शांतिपूर्वक पंक्तियों का गठन करें :

🔸वेदपाठी (यदि हैं)
🔸महिला गायन समूह
🔸पुरुष गायन समूह

🔹महिला एवं पुरुष गायकों के मध्य बारी-बारी से भी भजन गायन किया जा सकता है। सामूहिक गायन को प्रोत्साहित करना चाहिए।
🔹नगर संकीर्तन के चक्र को पूरा करके भक्तों को वापिस समिति (केंद्र) में लौटना है।
🔹केवल कपूर के साथ मंगल आरती की जानी चाहिए।
"परमं पवित्रं..." का उच्चारण करते हुए विभूति प्रसाद का वितरण ।

_१-केवल छोटे नामावली भजन ही नगर संकीर्तन में गाए जाने चाहिए ।_
_२-आलाप और विलंबित भजन बिल्कुल नहीं गाने चाहिए।_
_३-अधिक सर्वधर्म भजन गाए जाने चाहिए।_
_४-केवल आवासीय कालोनियों में ही भ्रमण करें, और मुख्य व्यस्त सड़कों जहां पर वाहनों की आवाजाही अधिक हो, वहां पर जाने से बचें।_
_५-सामान्य भजन सत्र में मंगल आरती केवल पुरुष भक्तों द्वारा ही की जाए।_
_६-"परमं पवित्रं" का बिना किसी ताल यहां तालियों के अधिकतम 3 बार सभी के द्वारा उच्चारण किया जाना चाहिए।_
     
     *2.5. श्रव्य उपकरण(Audio equipment) एवं संगीत वाद्ययंत्रों(Music instruments) के लिए दिशा निर्देश*

🔹श्रव्य उपकरण श्रेष्ठ गुणवत्तायुक्त होना चाहिए। पुरुष एवं महिला दोनों और अग्र गायकों के लिए अलग अलग अणुभाष यंत्र (माइक) उपलब्ध कराने चाहिए।
🔹अणुभाष  यंत्रों(माइक) को फर्श पर घसीटना नहीं चाहिए, अपितु उठाकर अपेक्षित स्थान पर रखा जाना चाहिए, जिससे आवाज के विरूपण से बचा जा सके।
🔹यदि संभव हो तो हारमोनियम और तबला/ ढोलक के लिए अलग-अलग माइक उपलब्ध कराने चाहिए।
🔹एक प्रशिक्षित सेवादल कार्यकर्ता को ध्वनि विस्तारक यंत्र (Amplifier) के निकट बैठकर सभी माइकों के ध्वनि स्तर की निरंतर निगरानी करनी चाहिए, जिससे भजन सत्र में दूसरों को परेशानी ना हो।
🔹संगीत वाद्ययंत्रों को अग्र गायकों को सहारा देना चाहिए, ना कि उनकी आवाज को दबाना चाहिए। यदि एक से अधिक वाद्य यंत्र प्रयोग में आ रही हैं तो उनके मध्य संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।
🔹संगीत वाद्य यंत्रों की संख्या कम से कम रखनी चाहिए जिससे गायकों की आवाज अंतिम पंक्ति तक बैठे भक्तों तक पहुंच सके।
🔹अग्र गायकों को अपने और माइक के बीच की सही दूरी को सुनिश्चित करना चाहिए, जिससे सर्वोत्तम प्रक्षेपण(output) मिल सके।
       
     *2.7. सार्वजनिक भजनों हेतु दिशा निर्देश*

🔹 सार्वजनिक भजन वह भजन है, जो सामुदायिक भवनों, सार्वजनिक स्थानों, जहां पर बड़ी संख्या में विभिन्न व्यवसायों से जुड़े व्यक्तियों का स्वागत किया जा सके, पर आयोजित किए जाते हैं ।
🔹सार्वजनिक भजनों का स्तर बहुत ऊंचा होना चाहिए, और एक श्रेष्ठ सार्वजनिक उद्घोषणा प्रणाली (P. A. System) होनी चाहिए।
🔹भगवान बाबा के साथ बुद्ध, ईसा मसीह और अन्य संतो के चित्र मुख्य रूप से वेदी पर रखे जाने चाहिएँ।
🔹सार्वजनिक भजनों में उपस्थिति विविधतापूर्ण होती  है। अतः जहां तक संभव हो इसे आध्यात्मिकता पूर्ण बनाने हेतु विशेष ध्यान रखना चाहिए।
🔹सार्वजनिक भजनों हेतु सुझाए गए स्थान निम्नलिखित है :
i. मंदिर
ii. वृद्ध आश्रम, अनाथालय, कारागार आदि
iii. अस्पताल
iv. बड़ी कालोनियां
v. कल्याण मंडप
vi. रक्षा क्षेत्र /रेडक्रॉस
vii. शिक्षण संस्थान
viii. कारखाने/उद्योग (कारपोरेट हाउस)
ix. अन्य विशेष अवसर

_सभी सुझाए गए निर्देश यहां पर लागू होते हैं,परंतु साथ में भजनों के चयन में विवेकशीलता का प्रयोग आवश्यक है । उदाहरणार्थ मंदिर में हमें सर्वधर्म भजन गाने से बचना चाहिए और मंदिर में विराजमान देव/देवी के भजन अधिक गाने चाहिएँ। दूसरी ओर अस्पतालों, कालोनियों आदि में अधिक सर्वधर्म भजन गाए जाने चाहिएँ।_
   
      *2.8.आवासीय भजनों के लिए दिशानिर्देश*

🔹यह भजन भक्तों या सक्रिय कार्यकर्ताओं के निवास स्थान पर आयोजित किए जाएंगे। भजन गायन के सभी दिशानिर्देश यहां लागू होंगे।
🔹आवासीय भजन की तिथियों का नियमित मंडली/ समिति भजन की तिथियों से टकराव नहीं होना चाहिए।
🔹भजन का समय स्थानीय लोगों की सुविधा के अनुसार निश्चित किया जाना चाहिए।
🔹अतिव्ययी (खर्चीले) रात्रिभोज /पुष्प सज्जा, चमक दमक आदि के रूप में अतिरंजिता नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यह चीजें भजन सत्र के मुख्य लक्ष्य और आध्यात्मिक प्रयोजन से ध्यान हटाती हैं।
       
   


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