श्री सत्य साई भजन मार्गदर्शिका- 1|| Guidelines for Sai Bhajan- 1

           
1. परिचय


"मानस भजरे गुरु चरणम्।दुस्तर भवसागर तरणम्।।

 गुरु महाराज गुरु जय जय।साईनाथ सद्गुरु जय जय।।"

20 अक्टूबर 1940 को जब भगवान ने विश्व के सामने अपने अवतारिक मिशन की घोषणा की, उन्होंने यह प्रथम भजन भी गाया।
यहाँ भगवान बाबा में वास्तव में नाम संकीर्तन के आंदोलन का शुभारंभ किया और हम सबको संसार के सागर को पार करने के सर्वोत्तम साधन नामस्मरण की आवश्यकता के महत्व का संदेश दिया।
उन्होंने गांव के मित्रों को एकत्रित करके पहला भजन समूह बनाया, जिसका नाम रखा _"पंढरी भजन मंडली"_ और पुट्टपर्ती गांव की गलियों में भगवान की महिमा का गायन करने लगे। इस प्रकार नामस्मरण के बीज को भगवान ने बोया, जिन्हें हम बाद में साई भजनों के नाम से जानते हैं।
दिव्यता की निकटता का अनुभव करने का अनपढ़ और ज्ञानी, अमीर और गरीब सभी के लिए सरलतम मार्ग भगवान के नाम का निरंतर स्मरण, यानि नाम स्मरण है।
महर्षि वेदव्यास ने यह घोषणा की थी कि कलयुग में भगवान के नाम स्मरण से श्रेष्ठ और कुछ नहीं है। साई भजन वास्तव में "संप्रदाय निरपेक्ष" है, क्योंकि मानवीय जानकारी के अनुसार भगवान के जितने रूप और नाम है उनका भजन सत्र में उच्चारण (गायन) किया जाता है। सभी धर्मों के लोग साई भजन में भाग ले सकते हैं, क्योंकि यह भजन राम, कृष्ण, अल्लाह, बुद्ध, जोराष्ट्र, ईसा मसीह, गुरु नानक, सत्य साई या भगवान के अन्य रूपों की स्तुति में गाए जाते हैं।

1.1 नवविधा भक्ति

भगवान श्री सत्य साई बाबा ने इस बात पर बल दिया है कि भक्ति के नौ प्रकारों में से नाम संकीर्तन ही कलयुग में मुक्ति पाने की एक आदर्श विधि है।
भक्ति के नो प्रकार यह है :
1-श्रवणम्
2-कीर्तनम्
3-विष्णु स्मरणम्
4-पाद सेवनम्
5-अर्चनम्
6-वंदनम्
7-दास्यम्
8-सख्यम्
9-आत्मनिवेदनम्

स्वामी ने कहा है कि कृतयुग में भक्तों ने ध्यान द्वारा मुक्ति प्राप्त की, त्रेता युग में यज्ञ, द्वापर युग में अर्चना और कलयुग में मनुष्य की आयु सीमा घट गई, और उनके पास समय बहुत कम है, इसीलिए नामस्मरण या नाम संकीर्तन मुक्ति का सरलतम उपाय बताया गया है। भगवान बाबा ने कहा है की गुरु नानक देव ने अपने दिनों में प्रार्थना के रूप में अपने अनुयायियों के लिए संकीर्तन की इस पद्धति का प्रारंभ किया था।

1.2. कीर्तनम् और संकीर्तनम् में अंतर

कीर्तन और संकीर्तन में एक बड़ा अंतर है। कीर्तन एक व्यक्तिगत कार्य है। यह एक व्यक्ति द्वारा अपनी प्रार्थनाओं की पूर्ति के लिए गायन है। संकीर्तन का ध्येय संपूर्ण विश्व की भलाई है। इसे "सामाजिक भजन" भी कहा जाता है। भजन गायन की इस विधि का प्रारंभ सर्वप्रथम सिख धर्म के संस्थापक श्री गुरु नानक देव द्वारा किया गया। संकीर्तन का ध्येय अनेकता में एकता को प्रदर्शित करना है। जब सभी प्रतिभागी एक साथ, एक सुर में, एक आवाज में गाते हैं, उसे संकीर्तन कहां जाता है।

       _पूर्णचंद्र सभागार ,3 मार्च 1992_
1.3. नाम संकीर्तन के प्रकार

भगवान श्री सत्य साई बाबा ने संकीर्तन में 4 विभागों का वर्णन किया है, जोकि इस प्रकार है :
1. गुण संकीर्तन
भजन का वह प्रकार जिसमें भक्त भगवान के पावन गुणों का गायन करता है, भगवान के साथ एकता का अनुभव करता है और दैवी गुणों को धारण करता है। जैसे प्रेम और दया के सागर, करुणामय, सत्यम, शिवम, सुंदरम्, शांति स्वरूप आदि। संत त्यागराज इस संकीर्तन का एक उदाहरण हैं।
2. लीला संकीर्तन:
लीला संकीर्तन वह है जिसमें भक्त भगवान की किसी दिव्य लीला के स्मरण से आनंद में नाचता और गाता है एवं पूर्ण रूप से उसमें डूब जाता है। इसका उदाहरण श्री जयदेव द्वारा गीतगोविंद है।
3. भाव संकीर्तन:
इसकी अभिव्यक्ति राधा में मिलती है जो कि भगवान के प्रति अपने विभिन्न भावों को भक्ति के प्रत्येक रंग में दर्शाती है। जैसे शांत भाव, सख्य भाव, वात्सल्य भाव, अनुराग भाव और मधुर भाव। राधा और मीरा भाव संकीर्तन की प्रतिपादक हैं।
*4. नाम संकीर्तन :*
चैतन्य महाप्रभु संकीर्तन के इस रूप के प्रतिपादक हैं। "सभी नाम तुम्हारे हैं। संसार में ऐसी कोई वस्तु नहीं है जो तुम्हारे नाम और रूप की छाप को धारण ना करती हो।" उन्होंने भगवान के नाम के गायन से परमानंद को प्राप्त किया।

जबकि पिछले प्रत्येक युग में भक्तों ने भजन गायन की अलग-अलग विधियों को अपनाया। यह हमारा सर्वोच्च सौभाग्य है कि साई भक्तों को सभी चारों प्रकार के संकीर्तन का आनंद मिल रहा है। जो भजन यहां गाए जाते हैं उनमें संकीर्तन के चारों प्रकार का सम्मिलन है।
1.4. नाम संकीर्तन/भजन की आवश्यकता

व्यक्तिगत विकास के लिए-व्यष्टि

भगवान श्री सत्य साई बाबा ने कहा है 'चैतन्य शुद्धये कर्मः'। उन्होंने नामस्मरण को हमारे मन या चित्त को शुद्ध करने का साधन बताया है। यह मानव के क्रमिक विकास की प्रक्रिया में आवश्यक है।

_यह कैसे घटित होता है?_

जब एक भक्त भजन गाता है, उसके हृदय में भाव उत्पन्न होते हैं; जबकि मन के द्वारा रूप का ध्यान एवं मनन होता है और उसकी जिह्वा एवं हाथ गायन और ताली बजाने में व्यस्त होते हैं। इस प्रकार उसका शरीर मन एवं हृदय भगवान के मनन एवं चिंतन में जुड़े रहते हैं। यह भक्त के विचार शब्द एवं कर्म को एक करता है एवं पवित्र करता है, जिससे उसे भगवान की कृपा प्राप्त होती है।

_नाम स्मरण हमारे लिए क्या करता है ?_

यह "तारण उपाय" है। बंधन और आसक्ति के भ्रम या संसार के सागर को पार करने का सरलतम साधन है। भगवन्नाम माया के उस आवरण को हटाता है जोकि शक्ति को व्यक्ति से, सार्वभौम को व्यष्टि से छुपा देता है। जब यह आवरण मिट जाता है तो मनुष्य अपने अंदर दिव्यत्व को खोज लेता है। वह विश्व को अपने समान ही देखता है। मनुष्य में असीम शक्ति है, क्योंकि वह एक तरंग है, जोकि सत् , चित् ,आनंद रूपी अनंत सागर से एकाकार है।

स्वामी कहते हैं - तुम्हारे हृदय की बांबी में दुर्गुणों के रूप में अनेक सर्प विद्यमान हैं। जब तुम नामस्मरण करोगे तो दुर्गुणों के सभी सर्प बाहर आ जाएंगे। नामस्मरण नादस्वरम् के समान है जो सांपों को आकर्षित करके बाँबियों से बाहर ले आता है। यह नादस्वरम् ही तुम्हारा जीवन स्वर और प्राण स्वर है।
दुर्गुणों से छुटकारा पाने के लिए मनुष्य को नामस्मरण करना चाहिए।
" उदाहरण के लिए एक वृक्ष है जो पक्षियों से भरा हुआ है। वह सब जगह गंदगी फैलाते हैं। इन शोर करने वाले पक्षियों से छुटकारा कैसे पाएं? तुम्हें जोर से ताली👏 बजाने होगी। इसी प्रकार जीवन रूपी वृक्ष में इच्छाओं रूपी पक्षी हैं जिनके द्वारा हृदय गंदा हो जाता है । इसे स्वच्छ करने के लिए भजन करो।"
(कोडईकनाल दिव्य प्रवचन, १२ अप्रैल, १९९६)

समाज पर प्रभाव-समष्टि

नाम स्मरण न केवल व्यक्तिगत लाभ प्रदान करता है बल्कि उस समाज को भी लाभान्वित करता है जहां हम रहते हैं। भजन श्रोताओं को चेतना के उच्चतम स्तर पर ले जाता है और दिव्यता के उच्चतर क्षेत्रों को प्रकट कर देता है। यह श्रोताओं को आनंद प्रदान करता है और उनके जीवन से तनाव एवं दबाव को दूर करता है।

स्वामी ने कहा है - "मान लो तुम एक पहाड़ी पर जाते हो और भगवान की महिमा का गायन करते हो, तो उससे उत्पन्न दिव्य कंपनी एक बड़े क्षेत्र तक पहुंचेंगे और जो लोग दूर तक  नामस्मरण को सुनेंगे वह प्रसन्नता का अनुभव करेंगे। दिव्य संगीत बच्चों और पशुओं तक को शांति और सुकून प्रदान कर सकता है। नामस्मरण को सुनकर पाषाण हृदय व्यक्ति का भी हृदय पिघल जाता है। हमने भारतीय इतिहास में ऐसे अनेक प्रकरणों को सुना है जहां भगवान के महान भक्तों ने अपने नाम स्मरण के द्वारा दुर्दांत अपराधियों में भी पूर्ण रूप में बदलाव ला दिया ।"
 "भजन द्वारा शुभेच्छा प्रेम और आनंद को फैलनी चाहिए। इसके द्वारा प्रदूषित वातावरण स्वच्छ होना चाहिए। इसे सब को प्रसन्नता और शांति बांटने के लिए आमंत्रित करना चाहिए। नगर संकीर्तन के द्वारा प्रेम और भक्ति प्रसारित होनी चाहिए। जो आनंद मुझे भजन से प्राप्त होता है वह किसी और वस्तु से नहीं होता। इसी कारण मैं इन बिंदुओं पर बल दे रहा हूं। प्रत्येक क्षण को ऊर्जा उत्साह और प्रयत्न से भर दो।"
(श्री सत्य साई वचनामृत-8)

वातावरण पर प्रभाव-सृष्टि

आज विश्व के पांच आधारभूत तत्व - आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी प्रदूषित हो चुके हैं। तुम शुद्ध जल और शुद्ध वायु नहीं प्राप्त कर सकते। जो थ्वनियाँ तुम सुनते हो वह भी अशुद्ध हैं। भूमि भी प्रदूषित है । कलयुग अब कल्मष युग(अशुद्धि का युग) बन चुका है। इस सब को शुद्ध करने का एक मात्र साधन है - भगवान के नामों का उच्चारण।

भगवान ने कहा है कि _आजकल लोग अपना अधिकांश समय TV देखने में व्यतीत करते हैं तो इसमें कौन सी आश्चर्य की बात है कि जो बच्चे इन परिस्थितियों में उत्पन्न हो रहे हैं वह TV के उत्पाद हैं। वह बचपन से ही अभिनेता की तरह व्यवहार करते हैं। वह बचपन से ही खतरनाक करतब दिखाते हैं। केवल माता पिता ही इसके लिए दोषी हैं। पुराने समय में जब कोई स्त्री गर्भवती होती थी, तब वह प्रह्लाद, सत्यवान और अन्य महान आत्माओं की कहानियां सुनती थी। ऐसी नैतिक कथाओं के द्वारा गर्भस्थ शिशु सकारात्मक कंपन प्राप्त करता था।_

भगवान श्री सत्य साई बाबा के अनुसार भगवन्नाम में सकारात्मक दिव्य तरंगों को उत्पन्न करने की अपार शक्ति है, जो कि सभी प्रकार के प्रदूषणों के लिए प्रतिकारक के रूप में कार्य करता है। वास्तव में प्रत्येक शब्द जो हम बोलते हैं वह श्रोता में सूक्ष्म प्रभाव उत्पन्न करता है। यह जो ध्वनि कंपन उत्पन्न करता है, उसी आधार पर सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न होता है।सकारात्मक और सुखदायक शब्द सकारात्मक कंपन उत्पन्न करते हैं और इसी तरह नकारात्मक शब्दों से नकारात्मक कंपन उत्पन्न होते हैं। इसलिए भगवान सदैव दूसरों की भावनाओं को आहत न करने वाली मधुर वाणी पर बल देते हैं ।
रूस और अन्य देशों में हुए प्रयोगों के द्वारा ग्रहण किए गए भोजन एवं व्यक्ति के मानसिक दृष्टिकोण के मध्य संबंध को दर्शाया गया है। उदाहरणार्थ एक बच्चा जो गर्भ में बढ़ रहा था, सेब के रस पर पला। उसने जन्म के बाद सेब के प्रति अपनी रुचि प्रदर्शित की।
भगवान के नामों के उच्चारण से उत्पन्न ध्वनि तरंगे वायुमंडल में समा जाती हैं, जिसके परिणाम स्वरुप वातावरण की शुद्धि में सहायता मिलती है। ध्वनि तरंगों की शक्ति रेडियो तरंगों के द्वारा जो कि लंबी दूरी तक विकरित और प्राप्त की जाती हैं, सिद्ध होती है।
_भगवान बाबा के अनुसार जो वातावरण अशुद्ध ध्वनि तरंगों के कारण प्रदूषित हो गया है, वह दिव्य नाम के उच्चारण से पवित्र हो सकता है।_
हमारा वायुमंडल विद्युत चुंबकीय तरंगों(Electro magnetic waves) से भरा हुआ है । भगवान ने कहा है कि शहर, कस्बे और गांव भी नकारात्मक विद्युत-चुंबकीय तरंगों से भरे हुए हैं, जोकि मनुष्यों के विचारों और कर्मों, विक्रेताओं की चिल्लाहट, वाहनों का शोर और कारखानों एवं उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषण के परिणाम स्वरुप है।

भगवान के अनुसार इस ह्रास का समाधान नाम संकीर्तन या भजन है।
         जय साई राम
1.5. साई भजन की अद्वितीयता*
(Uniqueness of Sai Bhajan)

1. साई भजन गाने और दोहराने में सरल हैं, इसलिए सबकी भागीदारी को बढ़ावा मिलता है।
2. यह बिना किसी भेदभाव के सभी धर्मों के लोगों को भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करता है।
3. यह व्यक्ति में अनुशासन की भावना को लाता है।
4. आनंद और प्रसन्नता दायक अनुभव जो भागीदारों को आध्यात्मिक रूप से उन्नत करता है।
5. साई भजन गायन में कोई श्रेणी का विभाजन नहीं है, भगवान की नजर में सभी समान हैं; जो भजन गा रहा है और जो भजन को दोहरा रहे हैं।

1.6. साई भजन कहां पर आयोजित किए जाने चाहिए?

साई भजन किन्ही विशेष स्थान या वातावरण तक सीमित नहीं है, परंतु सामान्यतया यह भजन सत्र निम्न स्थानों पर आयोजित किए जाते हैं :
अ) सत्य साई समिति
ब) भजन मंडली
स) आवासीय भजन
द) दूसरे सार्वजनिक स्थान

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