Sri Rudram- 2 | Namakam | with meaning in Hindi | श्रीरुद्रम्- २ | नमकम् | हिंदी अर्थ सहित
वेदमंत्र एवम् अर्थ-7
🌸श्री रुद्रम्🌸
🙏नमकम्-2🙏
शिवेन वचसा त्वा गिरिशाच्छावदामसि, यथा नः सर्वमिज्जगदयक्ष्मगुं सुमना असत्।। ६ ।।
हे स्वरुप में सबको शान्तिदायक, देववाणी में स्थित होकर प्राणियों की रक्षा करने वाले रुद्र, तुम जिस बाण को शत्रुओं का नाश करने के लिये हाथ में धारण करते हो, उस बाण को कल्याणकारी करो और मनुष्यों तथा जगत के गौ आदि पशुओं को मत मारो। (6)
अध्यवोचदधिवक्ता प्रथमो दैव्यो भिषक्। अहीगंश्च सर्वाजम्भयन्त्सर्वाश्च यातुधान्य: ।। ७ ।।
मुख से भाषण करते हुए सर्वश्रेष्ठ दिव्य वैद्य रूप रुद्र से हम कह रहे हैं कि वे सर्प आदि क्रूर राक्षस जैसे दुष्टों को विनष्ट करके सम्पूर्ण नीच राक्षसी वृत्ति के लोगों को हमसे दूर करे।(७)
असौ यस्ताम्रो अरुण उत बभ्रु: सुमङ्गल: । ये चेमागं रुद्रा अभितो दिक्षुश्रिता: सहस्रशोऽवैषागं हेडईमहे ।। ८ ।।
जो यह उदय के समय ताम्रवर्ण, मध्य समय में अरुण वर्ण और अस्त समय में भूरे वर्ण युक्त हैं, वे उत्तम मंगल करने वाले सूर्य अनेक कणों का विस्तार करते हैं और जो सहस्रों रुद्र इसके सब ओर नाना दिशाओं में हैं, इनका क्रोध हमसे दूर रहे। (८)
असौ योऽवसर्पति नीलग्रीवो विलोहित: । उतैनं गोपा अदृशन्नदृशन्नुदहार्य: । उतैनं विश्वा भूतानि स दृष्टो मृडयातिन: ।। ९ ।।
यह जो अस्तकाल में नीलकण्ठ के समान और रक्तवर्ण आदित्य रूप निरंतर विचरण करता है। इसको गो-पालक और जल को ले जाने वाली स्त्रियाँ देखती हैं। यह इस प्रकार देखा जाने वाला रुद्र हम सबको सुखी करे। (९)
नमो अस्तु नीलग्रीवाय सहस्राक्षाय मीढुषे। अथो ये अस्य सत्त्वानोऽहं तेभ्योऽकरन्नम: ।। 10 ।।
नीलकण्ठ, सहस्र नेत्र, करुणापूर्ण रुद्र के लिए मेरा नमस्कार है। और जो इसके सत्वांश हैं उनके लिए भी मैं नमस्कार करता हूँ। (10)
🌻🌻🌻🙏🌻🌻🌻
🌸श्री रुद्रम्🌸
🙏नमकम्-2🙏
शिवेन वचसा त्वा गिरिशाच्छावदामसि, यथा नः सर्वमिज्जगदयक्ष्मगुं सुमना असत्।। ६ ।।
हे स्वरुप में सबको शान्तिदायक, देववाणी में स्थित होकर प्राणियों की रक्षा करने वाले रुद्र, तुम जिस बाण को शत्रुओं का नाश करने के लिये हाथ में धारण करते हो, उस बाण को कल्याणकारी करो और मनुष्यों तथा जगत के गौ आदि पशुओं को मत मारो। (6)
अध्यवोचदधिवक्ता प्रथमो दैव्यो भिषक्। अहीगंश्च सर्वाजम्भयन्त्सर्वाश्च यातुधान्य: ।। ७ ।।
मुख से भाषण करते हुए सर्वश्रेष्ठ दिव्य वैद्य रूप रुद्र से हम कह रहे हैं कि वे सर्प आदि क्रूर राक्षस जैसे दुष्टों को विनष्ट करके सम्पूर्ण नीच राक्षसी वृत्ति के लोगों को हमसे दूर करे।(७)
असौ यस्ताम्रो अरुण उत बभ्रु: सुमङ्गल: । ये चेमागं रुद्रा अभितो दिक्षुश्रिता: सहस्रशोऽवैषागं हेडईमहे ।। ८ ।।
जो यह उदय के समय ताम्रवर्ण, मध्य समय में अरुण वर्ण और अस्त समय में भूरे वर्ण युक्त हैं, वे उत्तम मंगल करने वाले सूर्य अनेक कणों का विस्तार करते हैं और जो सहस्रों रुद्र इसके सब ओर नाना दिशाओं में हैं, इनका क्रोध हमसे दूर रहे। (८)
असौ योऽवसर्पति नीलग्रीवो विलोहित: । उतैनं गोपा अदृशन्नदृशन्नुदहार्य: । उतैनं विश्वा भूतानि स दृष्टो मृडयातिन: ।। ९ ।।
यह जो अस्तकाल में नीलकण्ठ के समान और रक्तवर्ण आदित्य रूप निरंतर विचरण करता है। इसको गो-पालक और जल को ले जाने वाली स्त्रियाँ देखती हैं। यह इस प्रकार देखा जाने वाला रुद्र हम सबको सुखी करे। (९)
नमो अस्तु नीलग्रीवाय सहस्राक्षाय मीढुषे। अथो ये अस्य सत्त्वानोऽहं तेभ्योऽकरन्नम: ।। 10 ।।
नीलकण्ठ, सहस्र नेत्र, करुणापूर्ण रुद्र के लिए मेरा नमस्कार है। और जो इसके सत्वांश हैं उनके लिए भी मैं नमस्कार करता हूँ। (10)
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