गणपति अथर्वशीर्षम्- ५ | हिंदी अर्थ सहित | Ganapati Atharva Sheersham with meaning in Hindi- 5
वेदमंत्र एवम् अर्थ-5
🌻गणपति अथर्वशीर्षम्-4🌻
गकार: पूर्वरूपम्। अकारो मध्यमरूपम्। अनुस्वारश्चान्त्यरूपम्। बिन्दुरुत्तररूपम्। नाद: सन्धानम्। सगंहिता सन्धि: । सैषा गणेशविद्या। गणक ऋषि: । निचृद्गायत्रीच्छन्द: । गणपतिर्देवता। ॐ गं गणपतये नम: ।।७।।
"ग" कार पूर्वरूप है। "अ" कार मध्य रूप है। अनुस्वार अन्त्य रूप है। बिन्दु उत्तर रूप है।नाद संधान है। यही गणेश विद्या है। इसके ऋषि गणक हैं। इसका छन्द निचृत् गायत्री है। देवता गणपति हैं। ओम् गं गणपति को नमस्कार। (७)
एकदन्ताय विद्यहे वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्ति: प्रचोदयात्। । 4 ।।
मैं एक दात और मुड़ी हुई सूण्ड वाले देवता-(गणेश) की आराधना करता हूँ। वे मुझे सुप्रेरित कर ज्ञान प्रदान करें।(८)
एकदन्तं चतुर्हस्तं पाशमङ्कुशधारिणम्। रदं च वरदं हस्तैर्बिभ्राणं मूषकध्वजम्।। रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्।। रक्तगन्धानुलिप्ताङ्गं रक्तपुष्पैः सुपूजितम्।। भक्तानुकम्पिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्। आविर्भूतं च सृष्ट्यादौ प्रकृते: पुरुषात्परम्। एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वर: ।।9।
जिनका एक दाँत है, चार हाथों में पाश, अकुंश और अभय मुद्रा है। जिनके हाथ सफलता और वरदान देते हैं। जिनकी मूषक ध्वजा है।जिनका वर्ण लाल है, पेट बड़ा है, कान सूप जैसे हैं तथा लाल वस्त्र पहनते हैं। जिनके शरीर में लाल चन्दन लिपटा हुआ है तथा जिनकी लाल पुष्पों से पूजा की जाती है। भक्तों पर अनुकम्पा करने वाले देवता (गणेश) जगत अविनाशी कारण हैं। उनका आविर्भाव सृष्टि के उद्गम के पूर्व भी था। वे प्रकृति और पुरुष के परे अवस्थित हैं। जो उनकी इस रूप में निरन्तर आराधना करता है, वह योगियों में श्रेष्ठ योगी है। (९)
नमो व्रातपतये। नमो गणपतये। नम: प्रमथपतये। नमस्तेऽस्तु लम्बोदरायैकदन्ताय विघ्ननाशिने शिवसुताय वरदमूर्तये नमः। ।। १० ।।
सभी देवों के स्वामी को नमस्कार। सभी गणों के स्वामी को नमस्कार। सभी जीवधारियों के स्वामी को नमस्कार, बडे पेट वाले, एक दाँत वाले, विघ्न विनाशक शंकर के पुत्र, वर प्रदान करने वाले मंगलमूर्ति(गणेश जी) को नमस्कार। (१०)
🍃🌻साईराम🌻🍃
ईश्वरम्मानंदन श्री सत्य साई की जय
साई चरण कमलों में समर्पित
डॉ • सत्यकाम
🙏 🙏🙏🙏🙏🙏🙏
🌻गणपति अथर्वशीर्षम्-4🌻
गकार: पूर्वरूपम्। अकारो मध्यमरूपम्। अनुस्वारश्चान्त्यरूपम्। बिन्दुरुत्तररूपम्। नाद: सन्धानम्। सगंहिता सन्धि: । सैषा गणेशविद्या। गणक ऋषि: । निचृद्गायत्रीच्छन्द: । गणपतिर्देवता। ॐ गं गणपतये नम: ।।७।।
"ग" कार पूर्वरूप है। "अ" कार मध्य रूप है। अनुस्वार अन्त्य रूप है। बिन्दु उत्तर रूप है।नाद संधान है। यही गणेश विद्या है। इसके ऋषि गणक हैं। इसका छन्द निचृत् गायत्री है। देवता गणपति हैं। ओम् गं गणपति को नमस्कार। (७)
एकदन्ताय विद्यहे वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्ति: प्रचोदयात्। । 4 ।।
मैं एक दात और मुड़ी हुई सूण्ड वाले देवता-(गणेश) की आराधना करता हूँ। वे मुझे सुप्रेरित कर ज्ञान प्रदान करें।(८)
एकदन्तं चतुर्हस्तं पाशमङ्कुशधारिणम्। रदं च वरदं हस्तैर्बिभ्राणं मूषकध्वजम्।। रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्।। रक्तगन्धानुलिप्ताङ्गं रक्तपुष्पैः सुपूजितम्।। भक्तानुकम्पिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्। आविर्भूतं च सृष्ट्यादौ प्रकृते: पुरुषात्परम्। एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वर: ।।9।
जिनका एक दाँत है, चार हाथों में पाश, अकुंश और अभय मुद्रा है। जिनके हाथ सफलता और वरदान देते हैं। जिनकी मूषक ध्वजा है।जिनका वर्ण लाल है, पेट बड़ा है, कान सूप जैसे हैं तथा लाल वस्त्र पहनते हैं। जिनके शरीर में लाल चन्दन लिपटा हुआ है तथा जिनकी लाल पुष्पों से पूजा की जाती है। भक्तों पर अनुकम्पा करने वाले देवता (गणेश) जगत अविनाशी कारण हैं। उनका आविर्भाव सृष्टि के उद्गम के पूर्व भी था। वे प्रकृति और पुरुष के परे अवस्थित हैं। जो उनकी इस रूप में निरन्तर आराधना करता है, वह योगियों में श्रेष्ठ योगी है। (९)
नमो व्रातपतये। नमो गणपतये। नम: प्रमथपतये। नमस्तेऽस्तु लम्बोदरायैकदन्ताय विघ्ननाशिने शिवसुताय वरदमूर्तये नमः। ।। १० ।।
सभी देवों के स्वामी को नमस्कार। सभी गणों के स्वामी को नमस्कार। सभी जीवधारियों के स्वामी को नमस्कार, बडे पेट वाले, एक दाँत वाले, विघ्न विनाशक शंकर के पुत्र, वर प्रदान करने वाले मंगलमूर्ति(गणेश जी) को नमस्कार। (१०)
🍃🌻साईराम🌻🍃
ईश्वरम्मानंदन श्री सत्य साई की जय
साई चरण कमलों में समर्पित
डॉ • सत्यकाम
🙏 🙏🙏🙏🙏🙏🙏
ॐ गं गणपतये नमः ।
ReplyDelete