गणपति अथर्वशीर्षम् -२ | हिंदी अर्थ सहित | Ganapati Atharva Sheersham- 2
🌷वेद मंत्र एवम् अर्थ-3🌷
🙏गणपति अथर्वशीर्ष-2🙏
अव त्वं माम्। अव वक्तारम् । अव श्रोतारम् । अव दातारं । अव धातारम् । अवानूचानमव शिष्यम्। अवं पश्चात्तात्। अवं पुरस्तात्। अवोत्तरात्तात्। अव दक्षिणात्तात्। अव चोर्ध्वात्तात्। अवाधरात्तात्। सर्वतो माम् पाहि पाहि समन्तात् ।।
तुम मेरी रक्षा करो।अपने उपासक की रक्षा करो। उत्तम श्रोता की रक्षा करो। मुझ दान करने वाले की रक्षा करो।मुझ उपासना करने वाले की रक्षा करो। अपने सभी वेदपाठी शिष्यों की रक्षाकरो। मेरी पृष्ठभाग(पीछे) से रक्षा करो। मेरी सामने से रक्षा करो मेरी उत्तर से रक्षा करो। मेरी दक्षिण से रक्षा करो। मेरी ऊपर से रक्षा करो।मेरी नीचे से रक्षा करो। मेरी सभी बाधाओं से एवं समस्त दिशाओं में रक्षा करो। (३)
त्वं वाङ्मयस्त्वं चिन्मयः। त्वमानन्दमयस्त्वं ब्रह्ममय: । त्वं सच्चिदानन्दाऽद्वितीयोऽसि। त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि। त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि ।।४ ।।
तुम्ही वाणी और तुम्ही चेतना हो। तुम आनन्दमय और तुम्ही ब्रह्ममय हो। तुम्हीं सच्चिदानन्द हो, अन्य कोई नहीं।तुम प्रत्यक्ष ब्रह्म हो। तुम ज्ञानमय और विज्ञानमय हो।(४)
सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते। सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति। सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति। सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति। त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभ: । त्वं चत्वारि वाक्पदानि । । ५ ।।
सम्पूर्ण संसार तुम्हीं से उत्पन्न होता है। सम्पूर्ण संसार तुम्ही में स्थित है। सम्पूर्ण संसार तुम्हीं में लीन होगा। सम्पूर्ण संसार तुम्हारा ही प्रकट स्वरूप है। तुम भूमि, जल, अग्नि, वायु और आकाश हो।तुम वाणी के चारों रूप हो(५)
🌸ॐ श्री साईराम🌸
🙏गणपति अथर्वशीर्ष-2🙏
अव त्वं माम्। अव वक्तारम् । अव श्रोतारम् । अव दातारं । अव धातारम् । अवानूचानमव शिष्यम्। अवं पश्चात्तात्। अवं पुरस्तात्। अवोत्तरात्तात्। अव दक्षिणात्तात्। अव चोर्ध्वात्तात्। अवाधरात्तात्। सर्वतो माम् पाहि पाहि समन्तात् ।।
तुम मेरी रक्षा करो।अपने उपासक की रक्षा करो। उत्तम श्रोता की रक्षा करो। मुझ दान करने वाले की रक्षा करो।मुझ उपासना करने वाले की रक्षा करो। अपने सभी वेदपाठी शिष्यों की रक्षाकरो। मेरी पृष्ठभाग(पीछे) से रक्षा करो। मेरी सामने से रक्षा करो मेरी उत्तर से रक्षा करो। मेरी दक्षिण से रक्षा करो। मेरी ऊपर से रक्षा करो।मेरी नीचे से रक्षा करो। मेरी सभी बाधाओं से एवं समस्त दिशाओं में रक्षा करो। (३)
त्वं वाङ्मयस्त्वं चिन्मयः। त्वमानन्दमयस्त्वं ब्रह्ममय: । त्वं सच्चिदानन्दाऽद्वितीयोऽसि। त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि। त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि ।।४ ।।
तुम्ही वाणी और तुम्ही चेतना हो। तुम आनन्दमय और तुम्ही ब्रह्ममय हो। तुम्हीं सच्चिदानन्द हो, अन्य कोई नहीं।तुम प्रत्यक्ष ब्रह्म हो। तुम ज्ञानमय और विज्ञानमय हो।(४)
सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते। सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति। सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति। सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति। त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभ: । त्वं चत्वारि वाक्पदानि । । ५ ।।
सम्पूर्ण संसार तुम्हीं से उत्पन्न होता है। सम्पूर्ण संसार तुम्ही में स्थित है। सम्पूर्ण संसार तुम्हीं में लीन होगा। सम्पूर्ण संसार तुम्हारा ही प्रकट स्वरूप है। तुम भूमि, जल, अग्नि, वायु और आकाश हो।तुम वाणी के चारों रूप हो(५)
🌸ॐ श्री साईराम🌸
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