गीता वाहिनी सूत्र - ५० || Gita Vahini - 50 || Sri Sathya Sai Baba || The String of Unity (एकता का सूत्र)
एकता का सूत्र - ब्रह्म (Brahman - The String of Unity)
रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसूर्ययोः ।
प्रणवः सर्ववेदेषु शब्दः खे पौरुषं नृषु ॥७- ८॥
धागे के बिना फूल जिस प्रकार माला नहीं बन सकते उसी प्रकार ब्रह्म के बिना प्राणियों के मध्य ऐक्य नहीं हो सकता। प्रत्येक वस्तु और तत्व में ब्रह्म समाया हुआ है और इन दोनों को अलग नहीं किया जा सकता है। पंचतत्व इसका ही प्रत्यक्षीकरण है यही अंतरवर्ती प्रेरणा है जिसे बाह्य दृष्टि वाले नहीं देख पाते हैं। दूसरे शब्दों में यही अंतर्यामी है। इसलिए कृष्ण ने कहा "मैं जल में रस हूँ ; मैं सूर्य व चन्द्र में प्रभा हूँ ; मैं वेदो में प्रणव हूँ ; आकाश में शब्द हूँ ; मैं ही मानव में पौरुष (पराक्रम, साहस और प्रेरणा) हूँ।
श्री सत्य साई बाबा
गीता वाहिनी अध्याय १२ पृष्ठ १०८
Flowers cannot become a garland without the string; so too, Brahman unites all souls. You cannot separate the two in all things and substances; Brahman fills everything. The five elements are but Its manifestations. It is
the inner motive, unseen by those who look only at the surface. It is the inner motivator, in other words. That is why Krishna said, “I am taste (rasa) in water; I am effulgence, brilliance (prabha) in the sun and moon; I am the Om (pranava) in the Vedas; I am sound in space; I am heroism, adventure, and aspiration in humanity.”
Sri Sathya Sai Baba
Geetha Vahini, Chapter 12.
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