गीता वाहिनी सूत्र - ४५ || Gita Vahini - 45 || Sri Sathya Sai Baba || The Yoga of Meditation (ध्यान योग)



ध्यान योग (The Yoga of Meditation)

योगी युञ्जीत सततमात्मानं रहसि स्थितः ।
एकाकी यतचित्तात्मा निराशीरपरिग्रहः ॥६/१०

नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नतः ।
न चाति स्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन ॥ ६/१६

युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु ।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा ॥ ६/१७

निष्काम कर्म का आधार होने से ही ध्यान योग संभव है। यदि मन नियंत्रण में न हो और आज्ञाओं का पालन न करता हो तो वह तुम्हारा सबसे बड़ा शत्रु बन सकता है। इसलिए एकांत वास करो, जिससे सब इंद्रियाँ तुम्हारे वश में हो सकें। बेलगाम घोड़ा, बिना जुता बैल और इंद्रियों को वश में न कर सकने वाला साधक, सब सूखी नदी की तरह हैं। इनकी साधना व्यर्थ होती है।

जो अत्यधिक भोजन कर थक गए हैं या जो अत्यल्प भोजन कर अशक्त हो गए हैं; बहुत अधिक या बहुत कम सोने वाले, अपनी सुविधा को देखकर ध्यान करने वाले (जो एक दिन बहुत देर तक ध्यान करेंगे क्योंकि और कोई काम नहीं, दूसरे दिन नाम मात्र को करेंगे क्योंकि उस दिन बहुत काम है), जो अपने छह आंतरिक शत्रु  (काम, क्रोध इत्यादि) को पूर्ण छूट देते हैं; जो माता-पिता को, विशेष रुप से माता को सुखी नहीं रखते; इनसे भी गए गुजरे वे लोग, जिनका नाममात्र को भगवान में विश्वास होता है और ऐसे गुरु में भी कम होता है, जिसे चुनकर उन्होंने अपने हृदयों में  प्रतिष्ठित किया। ऐसे सभी लोगों का ध्यान बिल्कुल निष्फल रहता है।

श्री सत्य साई बाबा
गीता वाहिनी अध्याय ११ पृष्ठ १०१

The yoga of meditation is possible only on the basis of this renunciation of the fruit of action. If the mind is not under control and amenable to one’s orders, it can become one’s greatest foe. So, live in solitude so that you can master the senses. A horse without reins, a bull unused to the yoke, and a spiritual aspirant whose senses are not mastered are all like a river without water. Such spiritual discipline is a waste.

For those who eat too much and get exhausted with the task of assimilating it, for those who eat less and suffer from exhaustion, for those who sleep too much or too little, for those who indulge in meditation according to ‘convenience’ (that is to say, those who do it for long hours one day because they have no other work and do just token meditation the next day because they have lots of work), for those who give free rein to the six inner enemies (desire, anger, and the rest), for those who do not confer joy on parents, and especially the mother more than all these, for those who entertain doubt and have little faith in the Lord or in the guru whom they have chosen and installed in their hearts —for all these, meditation will yield no fruit at all.

Sri Sathya Sai Baba
Geetha Vahini, Chapter 11.
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