गीता वाहिनी सूत्र -४६ || Gita Vahini - 46 || Sri Sathya Sai Baba || The Yoga of Meditation (ध्यान योग)



ध्यान योग (The Yoga of Meditation)

यथा दीपो निवातस्थो नेंगते सोपमा स्मृता ।
योगिनो यतचित्तस्य युञ्जतो योगमात्मनः ॥ ६/१९

यतो यतो निश्चरति मनश्चञ्चलमस्थिरम्‌ ।
ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत्‌ ॥ ६/२६

सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि ।
ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः ॥ ६/२९

यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति ।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ॥ ६/३०

आत्मौपम्येन सर्वत्र समं पश्यति योऽर्जुन ।
सुखं वा यदि वा दुःखं स योगी परमो मतः ॥ ६/३२

योग में प्रवीण साधक का मन वायु विहीन झरोखे में स्थित स्थिर, सीधी, निश्चल दीपशिखा की तरह होना चाहिए। जब भी अस्थिरता के किंचित मात्र भी चिह्न दिखने लगें, मन को तुरंत ही नियंत्रण में लाने का प्रयत्न करना चाहिए और उसे इधर-उधर भटकने से रोकना चाहिए। तुम सब में हो - ऐसी चेतना जागृत करो ; और एकात्मता की ऐसी भावना बनाओ किस सब तुम में ही हैं। तभी तुम साधक बनकर सब योगों में सफलता प्राप्त कर सकोगे। तब तुम, 'मैं' और 'अन्य', 'आत्मा और परमात्मा' के भेद-भाव से मुक्त हो जाओगे। दूसरों के सुख और दुःख तुम्हें अपने ही सुख और दुःख लगेंगे। ऐसी अवस्था की प्राप्ति होने से फिर किसी को कभी हानि नहीं पहुँचा सकोगे। तुम सब में सर्वेश्वर प्रतीत होने से, तुम्हारे मन में सबके लिए प्रेम और आदर भाव होगा। भगवान कृष्ण ने घोषित किया कि जिसने ऐसे दिव्य चक्षु प्राप्त कर लिए हैं, वे ही वास्तव श्रेष्ठतम योगी हैं।

श्री सत्य साई बाबा
गीता वाहिनी अध्याय ११ पृष्ठ १०१-१०२

The mind of the yoga adept should be like the steady upright unshaken flame of the lamp, kept in a windless window sill. Whenever the slightest sign of unsteadiness occurs, endeavour to curb the mind and not allow it to wander. Develop the consciousness that you are in all and the feeling of oneness that all is in you. Then, you can take up and succeed in all the yogas. Then, you are free from all distinctions like ‘ I ‘ and ‘others’, or ‘Atma and Paramatma’. The joy and grief of others will then become equally yours. You can then never harm others; then all can be loved and adored in the awareness that they are the Lord of all (Sarveswara).” Lord Krishna declared that those who have attained this vision are really the supremest yogis.

Sri Sathya Sai Baba
Geetha Vahini, Chapter 11.
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