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Showing posts from January, 2017
शिवलिंगाष्टकम्(Lingàshtakam) ब्रह्ममुरारिसुरार्चित लिगं निर्मलभाषितशोभित लिंगम्। जन्मजदुःखविनाशक लिंग तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं॥१ मैं उन सदाशिव लिंग को प्रणाम करता हूँ जिनकी ब्रह्मा, विष्णु एवं देवताओं द्वारा अर्चना की जाति है, जोसदैव निर्मल भाषाओं द्वारा पुजित हैंतथा जो लिंग जन्म-मृत्यू के चक्र का विनाश करता है (मोक्ष प्रदान करता है) देवमुनिप्रवरार्चित लिंगं, कामदहं करुणाकर लिंगं। रावणदर्पविनाशन लिंगं तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं॥२ देवताओं और मुनियों द्वारा पुजित लिंग, जो काम का दमन करता है तथा करूणामयं शिव का स्वरूप है, जिसने रावण के अभिमान का भी नाश किया, उन सदाशिव लिंग को मैं प्रणाम करता हूँ। सर्वसुगंन्धिसुलेपित लिंगं, बुद्धिविवर्धनकारण लिंगं। सिद्धसुरासुरवन्दित लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं॥३ सभी प्रकार के सुगंधित पदार्थों द्वारा सुलेपित लिंग, जो कि बुद्धि काविकास करने वाल है तथा, सिद्ध- सुर (देवताओं) एवं असुरों सबों के लिए वन्दित है, उन सदाशिव लिंक को प्रणाम। कनकमहामणिभूषित लिंगं, फणिपतिवेष्टितशोभित लिंगं। दक्षसुयज्ञविनाशन लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं॥४ स्वर्
https://youtu.be/6ew9W9GTLq4 साधना पर आधारित श्लोक स्वर : विभूति शर्मा For more Videos...Like, Share & subscribe...https://m.youtube.com/channel/UCGmcOXA4ZCyRRvem2B9nzhg  उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत् | आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मन: || 5|| हमें स्वयं अपना और अपनी आत्मा का उद्धार करना चाहिए. अपनी हिम्मत कभी न हारे क्योंकि हमारी आत्मा ही हमारा मित्र है और वही हमारा शत्रु भी. इसके अलावा न कोई हमारा मित्र है और ना ही कोई शत्रु।  इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रमित्यभिधीयते । एतद्यो वेत्ति तं प्राहुः क्षेत्रज्ञ इति तद्विदः ॥ १ ॥ हे अर्जुन ! यह शरीर 'क्षेत्र' इस नाम से कहा जाता है; और इसको जो जानता है, उसको 'क्षेत्रज्ञ' इस नाम से उनके तत्त्व को जानने वाले ज्ञानीजन कहते हैं ।।1।। सत्त्वं रजस्तम इति गुणाः प्रकृतिसम्भवाः । निबन्धन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम् ॥ ५ ॥ सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुण – ये प्रकृति से उत्पन्न तीनों गुण अविनाशी शरीर में बाँधते हैं । अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च। निर्ममो निरहङ्कारः समदुःखसुखः क्षमी।।12.13।।