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श्री माताजी की प्रार्थना एवं ध्यान || २ नवंबर १९१२

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श्री माताजी की प्रार्थनाएं और ध्यान  श्रीमाँ - २ नवंबर १९१२ हे परम स्वामी! हे चराचर के जीवन, प्रकाश तथा प्रेम ! यद्यपि मेरा सारा अस्तित्व सिद्धांत रूप में तुझे समर्पित है फिर भी इस समर्पण को ब्यौरे में मैं सदा लागू नहीं कर पाती। मुझे यह जानने में कई सप्ताह लगे हैं कि इस लिखित ध्यान का उद्देश्य, इसकी सार्थकता वास्तव में इसे प्रतिदिन तेरे सम्मुख रखने में ही है। इस प्रकार तेरे साथ जो मेरी अनेक बार बातचीत होती है उसके कुछ अंश में प्रतिदिन प्रति चरितार्थ कर पाऊंगी मैं तेरे सामने अपना भाव यथाशक्ति पूरी तरह निवेदित करूंगी; इसलिए नहीं कि मैं समझती हूं कि मैं तुझे कुछ बता सकती हूं - तू तो स्वयं सब कुछ है - बल्कि इसलिए कि संभवत है हमारा समझने तथा अनुभव करने का ढंग तेरे से भिन्न है, वस्तुतः तेरी प्रकृति से उल्टा। फिर भी जैसे मैं तेरी ओर अभिमुख होकर तेरे प्रकाश में स्नान करते हुए वस्तुओं को विचारती हूं, वैसे ही थोड़ा-थोड़ा मैं उन्हें वैसा देखती हूं जैसे कि वह है। फिर एक दिन तेरे साथ तादात्म्य हो जाने के कारण मुझे तुझसे कुछ कहने को नहीं होगा, क्योंकि मैं तू हो जाऊंगी। यही है वह उद्देश्य ज